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________________ हिन्दी अनुवाद :- आकाशवाणी की आशा से मैंने कुछ उपाय भी नहीं सोचा, पुनः तात्कालिक अन्य उपाय करने के लिए भी मैं समर्थ नही हूँ। गाहा : एसोवि हु अणुरागो एवंपि गए न तुट्टए कहवि। पइसमयं च पवड्डइ संतावो विरह-संजणिओ।। २२८ । संस्कृत छाया : एषोऽपि खल्वनुराग एवमपि गते न त्रुटति कथमपि । प्रतिसमयं च प्रवर्धते संतापो विरहसंजनितः।।२२८।। गुजराती अर्थ :- आ पण अनुराग जबरो छे आ प्रमाणे ते गये छते पण राग तुटतो नथी! पण प्रतिसमय विरहथी उत्पन्न थयेलो संताप वधे छ। हिन्दी अनुवाद :- यह अनुराग भी प्रबल है। उनके जाने पर भी राग कम नहीं होता है किन्तु प्रतिसमय विरह का संताप बढ़ता जाता है। गाहा : अवि य दुल्लह-लंभम्मि जणे जस्सिह पुरिसस्स होइ अणुरागो। छिल्लरय-पाणिएणव अणुदियहं तेण सुसियव्वं ।।२२९।। संस्कृत छाया :- अपि च दुर्लभलब्धे जने यस्येह पुरुषस्य भवत्यनुरागः। पल्वल-पानीयेनेव अनुदिवसं तेन शोष्टव्यम् ||२२९।। गुजराती अर्थ :- वळी पण दुर्लभताथी मेळवी शकाय एवा जनने विषे अहीं जे पुरुषने अनुराग थाय छे ते तळावडी नां पाणीनी माफक दरोज शोषाई जाय छे। हिन्दी अनुवाद :- फिर भी, दुर्लभता से प्राप्त हो सके ऐसे जन के ऊपर पुरुष का अनुराग होता है। वह तालाब के पानी के सदृश प्रतिदिन सूखता जाता है। गाहा : गरुय-पिय-संगमासा- भंस-समुच्छलिय- रणरणाइन्नं । न य जाणे हव इमं निय-हिययं संठवामित्ति? ।। २३०।। संस्कृत छाया :गुरुक-प्रिय-संगमाऽऽशाभ्रंश-समुच्छलित-रणरणाकीर्णम् (औत्सुक्यम्)। न च जानामि कथं वा इदं निजहृदयं संस्थापयामीति?||२३०।। गुजराती अर्थ :- प्रियाना समागम नी आशा भ्रष्ट थवाथी उत्पन्न थयेला नीसासा वड़े हुँ जाणतो नथी के मारा हृदयने केवी रीते स्थिर राखु? 211 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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