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________________ हिन्दी अनुवाद :- इत्यादि बहुत विकल्पों द्वारा मैं व्यथित हो गया, कहीं भी धैर्य को प्राप्त नहीं करता नगर से बाहर निकल गया। गाहा : पत्तो य तमुज्जाणं सच्चविया जत्थ सा मए पुट्विं । अंदोलण-तरु-हिढे गंतुमहं ताहि उवविठ्ठो ।। २२५।। संस्कृत छाया : प्राप्तश्च तदुद्यानं दृष्टा यत्र सा मया पूर्वम् । अंदोलन-तर्वधो गत्वाऽहं तत्रोपविष्टः ।।२२५।। गुजराती अर्थ :- अने ते उद्यानमा आव्यो के ज्यां पहेला में तेने जोई हती। तेज हींचकावाळा वृक्षनी नीचे जईने हुं त्यां बेठो। हिन्दी अनुवाद :- और उसी उद्यान में आया जहाँ मैंने उसे पहले देखा था वहीं झूलेवाले वृक्ष के नीचे जाकर मैं बैठ गया। गाहा : अह चिंतिउं पयत्तो इण्डिं किं मज्झ काउमुचियं तु। पर-हत्थं संपत्ता ताव पिया मह नियंतस्स।। २२६।। संस्कृत छाया : अथ चिन्तयितुं प्रयत इदानीं किं मम कर्तुमुचितं तु । परहस्तं सम्प्राप्ता तावत् प्रिया मम पश्यतः ।।२२६।। गुजराती अर्थ :- पछी हुं विचारवा लाग्यो अत्यारे मारे शुं करवु उचित छे? मारा जोता ज मारी प्रिया बीजाना हाथमां गई! हिन्दी अनुवाद :- फिर मैं सोचने लगा फिलहाल मुझे क्या करना चाहिए? मेरे देखते ही मेरी प्रिया दूसरों के हाथ में चली गई। गाहा : देवय-वयणासाए नेव उवाओवि चिंतिओ कोवि। इण्डिं पुण नो सक्कं किंपि उवायंतरं काउं ।। २२७।। संस्कृत छाया : देवतावचनाऽऽशायां नैवोपायोऽपि चिन्तितः कोऽपि । इदानीं पुनः न शक्यं किमपि उपायान्तरं कर्तुम् ।।२२७।। गुजराती अर्थ :- देववाणीनी आशावड़े मे बीजो कोई उपाय पण न विचार्यों वळी हमणां तात्कालिक बीजो उपाय करवा माटे पण हुं समर्थ नथी। 210 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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