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________________ हिन्दी अनुवाद :- कोई भी उपाय के द्वारा वह कनकमाला तुझे दी जायेगी पुन: हाथ में से गिरी हुई वह दुर्धर आपत्ति पायेगी। गाहा : ततो रक्खिय कोवि हु ढोइस्सइ तुज्झ तेण पज्जंतो । सुविणस्स सुंदरी इय विणिच्छिओ सुविण - सब्भावो ।। २१६ । । संस्कृत छाया : ततो रक्षित्वा कोऽपि खलु ठोकिष्यते तव तेन पर्यन्तः । स्वप्नस्य सुन्दर इति विनिश्चितः स्वप्न-सद्भावः।।२१६।। गुजराती अर्थ :- वळी ते आपत्तिमांथी कोई पण पुरुष तेनी रक्षा करी फरी ने तारा हाथमां आपशे माटे आ स्वप्ननुं फल सुन्दर छे एम मे निश्चय कर्यो! हिन्दी अनुवाद :- पुनः उस आपत्ति में भी कोई भी पुरुष तुम्हारी रक्षाकर पुनः तेरे हाथ में देगा, अतः इस स्वप्न का फल सुन्दर है, ऐसा मैंने निश्चय किया है। गाहा : तं सोउं मए भणियं सम्मं हि विणिच्छियं तुमे सुयणु ! | घडइ जओ एसत्यो नवरं अइदुग्धडो संस्कृत छाया : तत् श्रुत्वा मया भणितं सम्यक् खलु विनिश्चितं त्वया सुतनो ! | घटते यत एषोऽर्थो नवरं अतिदुर्धरो लोभः ।। २१७।। गुजराती अर्थ :- ते सांभळीने मे तेने कछु, हे सुतनु! ते जे निश्चय कर्यो छे ते सम्यक् छे आवो ज अर्थ घटे छे, बीजो नही, आ लोभ अतिदुर्धर छे । हिन्दी अनुवाद :- ऐसा सुनकर मैने उसे कहा, हे सुतनु ! तुने जो निश्चय किया है वह सम्यक् है। ऐसा ही अर्थ घटित होता है अन्य नहीं। यह लोभ अतिदुर्धर है। लोहो । । २१७ । । गाहा : तो भाइ भाणुवेगो वत्युं न तं अत्थि एत्थ लोगम्मि । अणुकूलस्स उ विहिणो जं मन्त्रे दुग्घडं होइ । । २१८ । । संस्कृत छाया : तस्माद् भणति भानुवेगो वस्तु न तदस्त्यत्र लोके । अनुकूलस्य तु विधेर्यद् मन्ये दुर्घटं भवति ।। २१८|| गुजराती अर्थ :- ते सांभळी फरी भानुवेग बोल्यो, आ लोक मां भाग्य अनुकूल होय तो कोई पण दुर्घट न थाय एम हुँ मानु छु । Jain Education International 207 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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