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१४ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक २ / अप्रैल-जून २००६
सन्दर्भ
१. जैन हितैषी भाग १३, अंक ६, पृ० २९२। २. धर्मसागर उपाध्याय, प्रवचन परीक्षा।
प्रेमी नाथूराम, जैन साहित्य और इतिहास पृ० २४१। ३. भगवती सूत्र, सुधर्मा स्वामी प्रणीत अभयदेव सूरि विरचित विवरण सहित, जिनागम
प्रकाशक सभा, मुम्बई वि० सं० १८५४ शतक १, उद्देशक ९, पृ० २०६-२०९
तथा २९६-३००। ४. उपरोक्त शतक २, उद्देशक १, सूत्र १८, पृ० २३८। ५. (a) सुधर्मा स्वामी 'आचारांग' प्रथम श्रुतस्कंध 'विमोक्ष' नामक अष्टम अध्ययन
उद्देश ४, ५, ६। (b) अंग सुत्ताणि, जैन विश्व भारती, लाडनूं (राजस्थान) वि० सं० २०३१,
आयारो, अष्टम अध्ययन उद्देश ४, ५, ६, ७ पृ० ६२-६५। Sacred Books of the East-Vol. २२ Jain Sutras Pt. मोतीलाल बनारसीदास
दिल्ली,१९६४ उपरोक्त आयारो छठा अध्ययन उद्देश २-३, पृ० ५०-५२।
आचारांग प्रथम श्रुतस्कंध भद्रबाहु स्वामी कृत नियुक्ति श्री शीलांकाचार्य कृत वृत्तियुक्त, सिद्धचक्र साहित्य प्रचारक समिति, जैनानन्द पुस्तकालय, सूरत, सन् १९३५ पाना नं० २१९-२२१। उत्तराध्ययन सूत्र नेमिचन्द्राचार्य विरचित सुखबोधवृत्ति बालापुर (वलाद) अहमदाबाद सन् १९३७ द्वितीय अध्ययन सूत्र १३, ३४, ३५. Sacred Books of the EastVol. २३ Jain Sutras pt. II, Motilal Banarasidas, ११ (७) व पृष्ठ १३
(१७) ८. अंगसुत्ताणि, जैन विश्वभारती, लाडनूं भाग १, नवम ठाण, पृ० ८९१॥
(a) कल्पसूत्र, विनयविजय गणि विरचित सुबोधिकावृत्ति, जैन आत्मानंद जैनसभा,भावनगर, १९१५, षष्ठ क्षण, सूत्र ११८, पृ०१५७। (b) कल्पसूत्र, प्राकृत भारती, जयपुर, सूत्र ११४-११५। (C) Sacred Books of the East- Jaina Sutras Pt. I, Motilal Banarasidas,Delhi 1964, Kalpa Sutra DP. संघवी सुखलाल, तत्त्वार्थसूत्र, भारत जैन महामण्डल, वर्धा परिचय
पृ० २२-२३। ११. भदन्त बोधानन्द महास्थविर-भगवान गौतम बुद्ध, प्र० बुद्ध विहार, लखनऊ। १२. डा० रमेशचन्द्र जैन, बौद्ध साहित्य में निगण्ठों का उल्लेख, महावीर स्मारिका,
राजस्थान जैन सभा, जयपुर १९९२ पृ. ३, ९ व ११।
१०.
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