SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत छाया : एवं च देवताया वचनमन्यस्मै नैव कथितव्यम् । मा विज्ञातस्वरूपो विरूपमाचरति स राजा ।।१९२।। गुजराती अर्थ :- अने देवताना वचन बीजा कोईने कहेवा नही कारण के जाणेला स्वरूपवाळो राजा कांई पण विरूप आचरण कदाच करे। हिन्दी अनुवाद :- अत: देवता के वचन किसी को भी कहना नहीं, क्योंकि इस स्वरूप को जान कर राजा कुछ भी अनिष्ट कर सकते हैं। गाहा : एयम्मि कए पयडे लोय-पवायाउ नाय-परमत्थो। रायाऽवस्सं तुह वल्लहस्स आयरइ असुहति ।।१९३।। संस्कृत छाया : एतस्मिन् कृते प्रकटे लोकापवादाद् ज्ञातपरमार्थः ।. राजा अवश्यं तव वल्लभस्य आचरति अशुभमिति ।।१९३।। गुजराती अर्थ :- जो आ वात प्रकट थाय तो लोकनिन्दा थी जाणेलापरमार्थवाळा राजा अवश्य तारा प्रियनु अशुभ आचरण करे! हिन्दी अनुवाद :- यदि यह बात प्रगट हो जाय तो लोकनिन्दा से रहस्य पाकर राजा तेरे प्रिय-का अशुभ कर सकता है। गाहा :- चित्रमाला ने संदेशो आपवो तो भणइ कणगमाला एवं एयंति नस्थि संदेहो। ता अम्बे! पत्थुयत्थे उज्जम किं एत्थ बहुएण?।।१९४।। संस्कृत छाया : ततो भणति कनकमाला एवमेतदिति नास्ति संदेहः। तस्माद् हे अम्ब! प्रस्तुतार्थे उद्यच्छ किमत्र बहुकेन?||१९४।। गुजराती अर्थ :- आथी कनकमाला कहे छे ‘आ प्रमाणे ज थशे एमां कोई संदेह नथी। तेथी हे माता! प्रस्तुत प्रसंग मां उधम को अहीं बहु कहेवा वडे शर्यु?' हिन्दी अनुवाद :- अब कनकमाला कहती है, इसी प्रकार होगा इसमें आप तनिक भी सन्देह मत करो। हे माता! अभी करने योग्य कर्तव्य कीजिए यहाँ इतना कहना पर्याप्त है। गाहा : तत्तो य मए गंतुं सिटुं एयं तु चित्तमालाए । भणिया बहु-प्पगारं तुह धूया भणइ एवं तु ।।१९५।। 199 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy