SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत छाया : ततश्च मया गत्वा शिष्टं एतत्तु चित्रमालायै। भणिता बहुप्रकारं तव दुहिता भणन्ति एवं तु ।।१९५।। गुजराती अर्थ :- त्यारपछी में जईने चित्रमाला ने कह्यु के, ताटी पुत्रीने घणा प्रकारे कहेवाये छते तेणे आ प्रमाणे कहयु छे।। हिन्दी अनुवाद :- बाद में मैनें जाकर चित्रमाला से कहा, बहुत समझाने पर आपकी पुत्री ने इस प्रकार कहा है। गाहा : जं किंचि भणइ ताओ जं चिय इह बहु-मयं तु अम्बाए । जं चेव य सगुणतरं मएवि तं चेव कायव्वं ।।१९६।। संस्कृत छाया : यत् किंचिद् भणति तातो यदेवेह बहुमतं तु अम्बया। यदेवं च सगुणतरं मया अपि तदेव कर्तव्यम् ।। १९६।। गुजराती अर्थ :- पिताजी जे कंई करी रह्या छे वली माताने अहीं जे अत्यंत मान्य छे तथा जे अतिशय गुणकारी छे ते ज मारे पण करवु जोइये। हिन्दी अनुवाद :- इस विषय में पिताजी जो कहते हैं, माता को जो मान्य हो एवं अतीव गुणकारी हो वही मैं करूंगी। गाहा : जह अब्भुदओ तायस्स होइ, जह होइ नावया कयावि। तह चेव य कायव्वं मएवि, किं एत्थ अन्नेण? ।।१९७।। संस्कृत छाया :यथा अभ्युदयः तातस्य भवति यथा भवति नापत् कदापि। तथा चैव च कर्तव्यं मयापि किमत्रान्येन? ||१९७।। गुजराती अर्थ :- जे प्रमाणे पितानो अभ्युदय थाय अने जे प्रमाणे कोईपण आपत्ति न आवे ते प्रमाणे हुँ पण स्वीकारीश अहीं बीजा विकल्पवड़े शं? हिन्दी अनुवाद :- जिस प्रकार पिताजी का अभ्युदय हो, तथा कोई आपत्ति न आये इस प्रकार मैं करूंगी, यहाँ अन्य विकल्प करने से क्या? गाहा : प्रसन्न पिता तत्तो य चित्तमाला तव्वयणं कहइ नियय-दइयस्स। तं सोउं अमियगई हरिसिय-वयणो इमं भणइ ।। १९८।। 200 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy