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________________ संस्कृत छाया : ततोऽविकल्पं तस्या वरणादि प्रत्येष्टव्यमिति । एवं खलु कृते क्रमशो भविष्यति इष्टार्थ-सम्प्राप्तिः ।।१८९।। गुजराती अर्थ :- आथी आप निःशंक थईने तेणीना लग्नादि कार्य नो स्वीकार करो। आ प्रमाणे कराये छते अनुक्रमे इष्ट अर्थनी प्राप्ति थशे। हिन्दी अनुवाद :- आप नि:शंक होकर लग्नादि कार्य स्वीकार करो, इस प्रकार होने से इष्ट फल की प्राप्ति भी होगी। गाहा : इय देवयाए वयणं सोऊणं चित्तवेग! अम्हाणं । संजातो गुरु-तोसो तत्तो य मए इमं भणियं ।।१९०।। संस्कृत छाया : इति देवताया वचनं श्रुत्वा हे चित्रवेग! अस्माकम् । सञ्जातो गुरुतोषः ततश्च मया इदं भणितम् ।।१९०।। गुजराती अर्थ :- हे चित्रवेग! आ प्रमाणे देवताना वचन सांभळीने अमने घणो ज संतोष थयो। अने पछी में कह्यु - हिन्दी अनुवाद :- हे चित्रवेग! इस प्रकार देवता की वाणी सुनकर हमें भारी संतोष हुआ और मैने कहा - गाहा : मण-वंछिय-वत्थुम्मी मा कीरउ पुत्ति! कावि आसंका। कवडेणवि तेण तुमं मन्नसु निय-जणय-वयणंति ।। १९१।। संस्कृत छाया : मनोवाञ्छित-वस्तुनि मा क्रियतां हे पुत्रि! कापि आशङका। कपटेनापि तेन त्वं मन्यस्व निजजनकवचनमिति ।। १९१।। गुजराती अर्थ :- हे पुत्री! मनोवाञ्छित वस्तुमां कोई पण शंका करवी नही, कपटथी पण तुं पोताना पिताना वचननो स्वीकार कर। हिन्दी अनुवाद :- हे पुत्रि! मनोवाञ्छित वस्तु में कोई भी शंका मत करना, कपट से भी तूं पिताजी का वचन स्वीकार ले। गाहा : एवं च देवयाए वयणं अन्नस्स नेव कहियवं। मा विन्नाय-सरूवो विरूवमायरइ सो राया।।१९२।। 198 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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