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________________ हिन्दी अनुवाद :- अतः तूं स्त्रीबुद्धि को छोड़कर आगे की सोच, राजपुत्र नभोवाहन कुमार को नही देने पर उससे होने वाले गुण-दोष या हानि-लाभ इत्यादि का विचार कर । अन्नं च गाहा : कणगमाला बहु- माण-परा हु जणणि-जणगाणं । पडिकूलिस्सइ वयणं न अम्ह गुण-दोस कहणेण । । १३२ । । संस्कृत छाया : अन्यञ्च कनकमाला बहुमानपरा खलु जननी - जनकयोः । प्रतिकूलयिष्यति वचनं नावयोः गुणदोष-कथनात् । । १३२ । । गुजराती अर्थ :- कनकमाला माता-पिता उपर निश्चे बहुमान वाळी छे। आ कारणथी आपणा गुण दोष कहेवावडे ते आपणु वचन प्रतिकूल नही करे । हिन्दी अनुवाद :- पुनः कनकमाला को माता-पिता पर आदर भाव है अतः लाभः हानि के कारण वह प्रतिकूल आचरण नही करेगी। गाहा : अन्नं च, कन्नगाए भत्ता किल होइ गुरु- अणुन्नाओ । तदणुन्नाए य जओ सयंवराईवि कीरंति ।। १३३ ।। संस्कृत छाया : अन्यञ्च कन्याया भर्ता किल भवति गुरु-अनुज्ञातः । तदनुज्ञया च यतः स्वयंवरादयोऽपि क्रियन्ते ।। १३३ ।। गुजराती अर्थ : वळी गुरु (माता-पिता) वड़े आज्ञा पमायेल पुरुष ज कन्यानो पति थाय छे। अने तेओनी आज्ञावड़े ज स्वयंवर विगेरे पण कराय छे। हिन्दी अनुवाद :- पुनः माता-पिता द्वारा निर्देशित पुरुष ही कन्या का पति होता है। और उन्हीं के निर्देश में ही स्वयंवर आदि भी किया जाता है। गाहा : किंच नहवाहण - राय-सुओ जाव न दिट्ठीइ गोयरे पडइ । तावच्चिय अणुराओ इमीए अन्नमि पुरिसम्मि । । १३४ । । संस्कृत छाया :किंच नभोवाहन - राजसुतो यावन्न दृष्ट्या गोचरे पतति । तावदेवानुरागोऽस्या अन्यस्मिन् पुरुषे ।। १३४।। गुजराती अर्थ :- ज्यांसुधी नभोवाहन - राजकुमारने दृष्टिवड़े जोयो नथी त्यांसुधी ज आने अन्य पुरुष उपर राग छे । Jain Education International 179 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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