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________________ हिन्दी अनुवाद :- हे भद्र! तूं जो कहती है वही सत्य है किन्तु भाग्य में कष्ट होने से अतिदुष्कर दुःख आ गिरा है। गाहा : तत्तो अइगुरु- सोगं रुयमाणिं पिच्छिऊण निय- दइयं । वज्जरियममियगइणा सुंदरि ! किं एत्थ रुन्नेणं? ।।१२९ ।। संस्कृत छाया : ततो अतिगुरूशोकां रुदन्तीं प्रेक्ष्य निजदयिताम् । कथितं अमितगतिना हे सुन्दरि ! किमत्र रुदितेन ।। १२९ ।। गुजराती अर्थ :- त्यारपछी अत्यंतशोकथी रडती एवी पोतानी पत्नीने जोईने अमितगति-बोल्यो हे सुन्दरी! अहीं रडवा वड़े शुं ? हिन्दी अनुवाद :तत्पश्चात् अत्यंतशोक से रोती अपनी पत्नी को देखकर अमितगति ने कहा, हे सुन्दरी! अब रोने से क्या लाभ? गाहा : किं मह थोवं दुक्खं नवरं न चएमि अन्नहाकाउं । सुइरंपि चिंतिऊणवि लभामि ननं उवायंति ।। १३० ।। संस्कृत छाया : किं मम स्तोकं दुःखं नवरं न शक्नोम्यन्यथाकर्तुम् । सुचिरमपि चिन्तयित्वापि लभे नान्यदुपाय-मिति । ।१३० ।। गुजराती अर्थ: तारा करता मारू आ दुःख शुं अल्प छे? परंतु अन्यथा करवा माटे मारी शक्ति नथी अने लांबा समय सुधी विचार करता पण बीजो कोई उपाय मळतो नथी । हिन्दी अनुवाद :- तेरी अपेक्षा मेरा यह दुःख क्या कम है ? किन्तु अतिरिक्त कुछ करने के लिए मेरा सामर्थ्य नहीं है तथा दीर्घकाल तक सोचने पर भी अन्य उपाय नहीं मिलता है। गाहा : तम्हा महिला - गाहं मोत्तूणं आयइं निरूवेसु । राय - सुयस्स अदाणे दोसे य गुणे विचिंतेसु । । १३१ । । संस्कृत छाया : तस्माद् महिला - आग्रहं मुक्त्वा आयतिं निरूपय । राजसुताय अदाने दोषान् च गुणान् विचिन्तय ।। १३१ ।। गुजराती अर्थ :- आथी तुं स्त्रीबुद्धिने छोडीने भावीनो विचार कर नभोवाहन राजकुमारने नहीं आपवामां दोषो अने गुणोनो विचार कर। Jain Education International 178 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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