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________________ हिन्दी अनुवाद : - जब तक नभवाहन कुमार को दृष्टि से नहीं देखा है तब तक ही उसे अन्य पुरुष पर राग है। गाहा : निज्जिय-अणंग-रूवे दिढे उण तम्मि होहिही रागो। ता किं सुंदरि! बहुणा विगप्प-संकप्प-जालेण।।१३५।। संस्कृत छाया : निर्जितानङ्ग-रुपे दृष्ट पुनस्तस्मिन् भविष्यति रागः। तस्मात् किं हे सुन्दरि! बहुना विकल्पसंकल्पजालेन ।। १३५।। गुजराती अर्थ :- कामदेवना रूपने पण जीतनार ते कुमारने जोया पछी तेणीने तेना उपर ज राग थशे। आथी हे सुन्दरी! अहीं घणा संकल्पविकल्प करवा वड़े सर्यु? हिन्दी अनुवाद :- कामदेव के रूप को पराजित करने वाले इस कुमार को देखने के बाद उसका राग उस पर ही होगा, अत: हे सुन्दरी! संकल्प-विकल्प को छोड़ दे। गाहा : गंतूण कणगमालं सुनिउण- वयणेहि भणसु तं सुयणु! । एयम्मि वइयरम्मि जह अम्हं होइ न हु वसणं ।।१३६।। संस्कृत छाया : गत्वा कनकमाला सुनिपुणवचनैः भण त्वं हे सुतनो! | एतस्मिन् व्यतिकरे यथा अस्माकं भवति न खलु व्यसनम् ।। १३६।। गुजराती अर्थ :- अने हे सुतनु! तुं ते कनकमाला पासे जईने युक्तियुक्त वचनो वड़े समजाव, जेथी आ प्रसंगमां आपणने कोई कष्ट न थाय। हिन्दी अनुवाद :- तथा हे स्तन! तूं कनकमाला को ऐसे युक्तियुक्त वचनों द्वारा उसे समझा कि इस प्रसंग में अपने को कोई भी कष्ट न आये। गाहा : एवं च अमियगइणा भणियाए ताहि चित्तमालाए। भणिया हं सोमलए! पिययम-वयणं लहुं कुणसु।।१३७।। संस्कृत छाया : एवं च अमितगतिना भणितया तदा चित्रमालया। भणिताहं सोमलते! प्रियतम-वचनं लघु कुरु ।।१३७।। गुजराती अर्थ :- अने आ प्रमाणे अमितगतिवड़े कहेवायेली चित्रमालाए त्यारे मने कहयु - 'हे सोमलते! तुं प्रियतमना वचन ने अती शीघ्न पूर्ण कर। 180 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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