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________________ हिन्दी अनुवाद :पुनः केवली भगवंत के वचन से कनकमाला पर बहुत आदर है अतः हां कहकर उसे राजा को न देने से भारी अनर्थ होगा। गाहा : रुद्वेण तेण वेयड्ड- नग-वरे जं न होइ आवासो । अइथोवं चिय एयं, अन्नंपि विरूवयं होइ ।। ११४ । । संस्कृत छाया : रुष्टेन तेन वैताढ्य नगवरे यन्न भवति आवासः । अतिस्तोकं एव एतद् अन्यदपि विरूपकं भवति ||११४|| गुजराती अर्थ :- राजा रोष पाने छते वैताढ्य - नगरमा रहेवु पण मुश्केल थाय आ तो अल्प कष्ट छे अने बीजु अनिष्ट आवी शके छे। हिन्दी अनुवाद :और राजा रूष्ट होने पर इस वैताढ्य नगर में रहना भी भारी हो जायेगा यह ता अल्प कष्ट है और भी दूसरे अनिष्ट हो सकते हैं। गाहा : अन्नं च गिहिस्सइ मड्डाइवि राया एयं न एत्थ संदेहो । ताव वरं सयमेव य समप्पिया संस्कृत छाया : अन्यच्च । गृहीष्यति बलात्कारादपि राजा एतां नात्र सन्देहः । तावद् वरं स्वयमेव च समर्पिता स्नेह वृद्ध्यै ।।११५।। गुजराती अर्थ : गाहा : नेह - विद्धीए ।।११५ ।। अने वळी पुत्री न आपीट तो बलात्कार थी पण ते ग्रहण करशे एमां कोई सन्देह नथी । तेना करता स्नेहवृद्धि माटे आपणे स्वयं ज आपवी श्रेष्ठ छे । हिन्दी अनुवाद :- पुत्री को नहीं देंगे तो भी बलात्कार से ले लेगा इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है, उससे तो स्वयं ही अर्पित करना श्रेष्ठ होगा; इससे स्नेहवृद्धि भी होगी । Jain Education International जइ पुण दिज्जइ एसा राय- - सुयं मोत्तु चित्तवेगस्स । ता तस्सवि अम्हाणवि पाणाणवि संसओ होइ ।। ११६ । संस्कृत छाया : यदि पुनः दीयते एषा राजसुतं मुक्त्वा चित्रवेगाय | तदा तस्यापि अस्माकमपि प्राणानां अपि संशयो भवति । ।११६ ।। गुजराती अर्थ वळी जो आ राजपुत्रने छोडीने चित्रवेगने अपाय तो तेना अने आपणा पण प्राणोनो संशय थाय छे। : - 173 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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