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________________ हिन्दी अनुवाद :- फिर भी चित्रमाला ने कहा - 'मेरे चित्त में ऐसा स्पन्दन होता है कि चित्रवेग के विरह से कनकमाला अवश्य प्राण छोड़ेंगी।' गाहा : कहकहवि मए जं सा तप्पावण-सूयगेहिं वयणेहिं । पुव्विं संघीरविया एयं पुण अन्नहा जायं।।१११।। संस्कृत छाया : कथं कथमपि मया यत् सा तत्प्रापणसूचकैः वचनैः । पूर्वं धैर्यमापादिता एतत् पुनरन्यथा जातम् ।।१११।। गुजराती अर्थ :- प्रिय प्राप्ति ना सूचक वचनोवड़े केमे करीने में एने धैर्य आप्यु। वळी आ तो बीजु ज थयु। हिन्दी अनुवाद :- प्रिय प्राप्ति आगमन सूचक वचन कहकर बहुत मुश्किल से मैंने धैर्य दिलाया था और यहाँ कुछ और ही हो गया। गाहा : भणियं च अमियगइणा एवं हि ठिए करेमि किं सुयणु! । जइ ताव न देमि इमं तो राया रूसइ अवस्सं ।।११२।। संस्कृत छाया :भणितंच अमितगतिना एवं खलु स्थिते करोमि किं हे सुतनो! । यदि तावन्न ददामि इमां ततो राजा (रुष्यति) रुष्येदवश्यम् ।।११२।। गुजराती अर्थ :- व्यारे अमितगतिए कहयु - ‘आ प्रमाणे कष्ट आवे हे सुतनु! हुं शुं करूं? जो पुत्री ने न आपु तो अवश्य राजा रोष पामशे। हिन्दी अनुवाद :- तब अमितगति ने कहा - 'हे सुतनु! इस प्रकार के कष्ट में मैं क्या करूं? यदि पुत्री न दूं तो राजा अवश्य क्रोधित होगा।' गाहा : केवलि-वयणा रन्नो अइगरुओ एत्थ आयरो जाओ। तेण इमाइ अदाणे अइगरुयं होइ मह खूणं ।।११३।।. संस्कृत छाया : केवलिवचनाद् राज्ञो अतिगुरुको अनादरो जातः। तेन अस्या अदाने अतिगुरुकं भवति मम क्षुणम् (हानि) ।।११३।। गुजराती अर्थ :- वळी केवली भगवंतना वचन थी ते राजानो कनकमाला उपर घणो आदर थयो छे माटे हां कहीने अत्यारे नहीं आपवा मां बहुमोटु अनर्थ थशे। 172 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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