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________________ हिन्दी अनुवाद : - बड़े गौरवपूर्वक श्रीगन्धवाहन राजा ने पुत्र नभोवाहन के लिए अपनी पुत्री की याचना की और (प्रेमवश हो) मैंने भी बात स्वीकार ली। गाहा : तं च इयाणिं अन्नहकाउं चाइज्जए न जं सुयणु!। एएण करणेणं मे भणियं आगयं वसणं ।।१०८।। संस्कृत छाया : तं च इदानी-मन्यथा कर्तुं शक्यते न यद् हे सुतनो! । एतेन कारणेन मया भणित-मागतं व्यसनम्।।१०८।। गुजराती अर्थ :- अने अत्यारे ते वचन अन्यथा करवा माटे पण हुं समर्थ नथी आ कारणथी हे सुतनु! कष्ट आवी पडयु एम में कहयु! हिन्दी अनुवाद :- अभी वह वचन अन्यथा करने के लिए भी मैं समर्थ नहीं हैं इसी कारण से हे सुतनु! कष्ट आया ऐसा मैंने कहा। गाहा : चित्रमालानी चिंता एव पिययम-वयण सोऊणं चित्तवेग! संजाया । मह सामिणीवि विच्छाय-वयणिया चित्तमालत्ति।।१०९।। संस्कृत छाया : एवं प्रियतम-वचनं श्रुत्वा हे चित्रवेग! सजाता । मम स्वामिनी अपि विच्छायवदना चित्रमालेति ।।१०९।। गुजराती अर्थ :- 'हे चित्रवेग! आ प्रमाणे प्रियतमनां वचन सांभळीने मारी स्वामिनी चित्रमाला पण बहु दुःखी थई। हिन्दी अनुवाद :- हे चित्रवेग! इस प्रकार प्रियतम के वचन सुनकर मेरी स्वामिनी चित्रमाला भी बहुत दुःखी हुई। गाहा : तत्तो तीए भणियं मह चित्ते फुरइ एरिसं ताव। परिचयइ कणगमाला तब्विरहे जीवियमवस्सं।।११०।। संस्कृत छाया : ततस्तया भणितं मम चित्ते स्फुरति ईदृशं तावत् । परित्यजति कनकमाला तदविरहे जीवितं अवश्यम।।११०।। गुजराती अर्थ :- ते छतां ते चित्रमाला वड़े कहेवायु-मारा चित्त मां आ प्रमाणे स्फुरण थाय छे। 'ते चित्रवेगना विरह थी कनकमाला अवश्य प्राण त्यागशे।' 171 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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