SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाहा : एवं च ठिए एसा एक्का घूया सुट्ठु पिया ताव कणगमालम्ह । एईए अणुराओ संजाओ चित्तवेगम्मि ।।१०५।। संस्कृत छाया :- एवं च स्थिते एषा एका दुहिता सुष्ठु प्रिया तावत् कनकमाला आवयोः। एतस्या अनुरागः सजातः चित्रवेगे ||१०५।। गुजराती अर्थ :- आ प्रमाणे स्थिति थये शुं करवु ? आपणी आ एक ज कनकमाला अत्यंत प्रिय पुत्री छे। अने एणीने चित्रवेग उपर अनुराग थयो छे। हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार की स्थिति होने पर क्या करें। यह कनकमाला अपनी इकलौती एवं अतिप्रिय पुत्री है और उसको चित्रवेग पर अनुराग हुआ है? गाहा : अमितगति नी चिंता ता जइ मणोऽणुकूलं संपाडिस्सं न एक्क-धूयाए । एईयवि, ता सुंदरि! किंच मए जीविएणंति? ।।१०६।। संस्कृत छाया : तस्माद् यदि मनोनुकूलं संपादयिष्यामि नैकदुहित्रे । ऐतस्यै अपि तस्माद् हे सुन्दरि! किं च मया जीवितेन इति ।। १०६।। . गुजराती अर्थ :- तेथी जो आ पुत्रीनो एक पण मनोरथ पूर्ण न करी शकुं तो हे सुन्दरी! मारा जीववा वड़े शं? हिन्दी अनुवाद :- अत: हे सुन्दरी! यदि इस पुत्री का मैं एक भी मनोरथ पूर्ण न कर सकू तो मेरे जीने से भी क्या लाभ? गाहा : उवयारेणं महया विमग्गिया राइणा सुय-निमित्तं । सिरि-गंधवाहणेणं मएवि दिन्ना इमा तस्स ।।१०७।। संस्कृत छाया : उपचारेण महता विमार्गिता राज्ञा सुतनिमित्तम् । श्रीगन्धवाहनेन मया अपि दत्ता इयं तस्मै ।।१०७।। गुजराती अर्थ :- मोटा गौरवपूर्वक श्रीगन्धवाहनराजा वड़े पुत्र माटे आपणी पुत्रीनी मांगणी करायी अने लागणीवश में वात स्वीकारी पुत्री तेने आपी दीधी। 170 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy