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गाहा :
केवलि-वयणं सोउं संजाओ मज्झ गरुय-आणंदो।
एत्यंतरम्मि राया समुट्ठिओ वंदिऊण मुणिं ।।९३।। संस्कृत छाया :
केवलि-वचनं श्रुत्वा सजातो मम गुरुकानंदः ।
अत्रान्तरे राजा समुत्थितो वन्दित्वा मुनिम् ।।१३।। गुजराती अर्थ :- केवलिना वचन सांभळीने मने बहुज आनंद थयो अटलीबारमा राजा मुनिने वन्दन करीने उभो थयो। हिन्दी अनुवाद :- केवली के वचन सुनकर मुझे बहुत ही आनंद आया, उतनी देर में मुनि को वन्दन कर के राजा उठा। गाहा :
तत्तो रन्ना सहिओ समागओ तम्मि चेव नयरम्मि।
अह रन्ना हं भणिओ बहु-माण-जुयं इमं वयणं।। ९४।। संस्कृत छाया :
ततो राज्ञा सहितः समागतः तस्मिन्नेव नगरे ।
अथ राज्ञा अहं भणितो बहुमानयुक्तं इदं वचनम् ।।९४।। गुजराती अर्थ :- त्यार पछी राजा सहित ते ज नगरमां हुं आव्यो अने राजार मने बहुमानयुक्त आ प्रमाणे वचनो कया। हिन्दी अनुवाद :- अत: राजा सहित मैं भी वही नगर में आया और राजा ने बहुमान युक्त वाणी से मुझे इस प्रकार कहा। गाहा.:
कनकमालानी मांगणी __ अइवल्लहावि धूया दायव्वा ताव कस्सइ नरस्स ।
जं एसा लोग-ट्ठिई तेणम्हे एरिसं भणिमो।।९५।। संस्कृत छाया :
अतिवल्लभापि दुहिता दातव्या तावत् कस्मै नराय।
यदेषा लोकस्थितिः तेन वयं ईदृशं भणामः ||९५।। गुजराती अर्थ :- हे अमितगति!
अतिप्रियपुत्री पण कोई पण मनुष्यने आपवानी होय छ। कारण के आवी लोकरिथति छे तेथी हुं आ प्रमाणे कहुं छु। हिन्दी अनुवाद :- अतिप्रियपुत्री भी किसी भी मनुष्य को देनी ही है क्यों कि ऐसी लोक की रीति है अत: मैं इस प्रकार कहता हूँ।
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