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________________ गाहा : एवं च पुच्छिएणं केवलिणा सुयणु! एरिसं भणियं । मा भद्द! कुण विसायं थोवं चिय एत्थ वत्थुम्मि ।।९०।। संस्कृत छाया : एवं च पृष्टेन केवलिना हे सतनो! ईदशं भणितम | मा हे भद्र! कुरु विषादं स्तोकमेव अत्र वस्तुनि ।।१०।। गुजराती अर्थ :- आ प्रमाणे पूछायेला केवलीवड़े आ प्रगाणे कठेवायु 'हे सुतनु! हे भद्र! आ अल्प वस्तुने विषे तुं खेद न पाम। हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार पूछने से केवली भगवंत द्वारा कहा गया, हे सुतनु! भद्र! इस अल्प वस्तु के विषय में तूं तनिक भी खेद न कर। गाहा : तुह धूयाए भत्ता सो होही जो इमम्मि वेयड्डे । गुण-कलियं पालिस्सइ विज्जाहर-चक्कवट्टित्तं ।। ९१।। संस्कृत छाया : तव दुहितुः भर्ता स भविष्यति योऽस्मिन् वैताढये । गुणकलितं पालयिष्यति विद्याधर-चक्रवर्तित्वम् ।।११।। गुजराती अर्थ :- आ वैताळ्यमा गुणसम्पन्न, एतु विधाधटोमां चक्रवर्ति पणु पामशे ते तारी पुत्रीनो स्वामी थशे। हिन्दी अनुवाद :- इन वैताढ्य के विद्याधरों में गुण सम्पन्न ऐसा चक्रवर्ती पद जो प्राप्त करेगा वही तेरी पुत्री का स्वामी होगा। गाहा : पुव्व-भव-नेह-बद्धा तुह धूया तस्स पाण-वल्लहिया। होही सयलंतेउर-ललाम-भूया महादेवी ।।९२।। संस्कृत छाया : पूर्वभवस्नेहबद्धा तव दुहिता तस्य प्राणवल्लभा । भविष्यति सकलान्तःपुर-ललाम-भूता महादेवी ।।१२।। गुजराती अर्थ :- पूर्वभवना स्नेहथी बंधायेली तारी पुत्री तेनी प्राणवल्लभा थशे तथा सकल अन्तःपुरमा तिलक समान महादेवी थशे। हिन्दी अनुवाद :- पूर्वभव के स्नेह तन्तु से बंधी हुई तेरी पुत्री उनकी प्राणवल्लभा बनेगी तथा सकल अन्त:पुर में तिलक समान महादेवी होगी। 165 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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