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________________ गाहा : एक्कच्चिय मह धूया जाया विन्नाण-रूव-संपुन्ना । पाणाणवि वल्लहिया नामेणं कणगमालत्ति ।। ८७।। संस्कृत छाया : एकैव मम दुहिता जाता विज्ञानरूपसम्पूर्णा । प्राणादपि वल्लभिका नाम्ना 'कनकमाला' इति।।८७।। गुजराती अर्थ :- ज्ञान अने रूपना भंडार प्राणथी पण अधिक प्रिय नामवड़े “कनकमाला" ए प्रमाणे मारे एक ज पुत्रि छ। हिन्दी अनुवाद :- विज्ञान और रूप से सम्पूर्ण, प्राण से भी अधिक प्रिय ‘कनकमाला' इस प्रकार के नामवाली मुझे इकलौती पुत्री है। गाहा : धूयाए को भत्ता होही मण-वल्लहोत्ति एयाए। चिंताए मह हिययं भयवं! निच्चंपि अक्खलियं ।। ८८।। संस्कृत छाया :दुहितुः को भर्ता भविष्यति मनोवल्लभ इति एतस्याः (एतया)। चिन्तया मम हृदयं हे भगवन्! नित्यमपि अस्खलितम् ।।८८।। गुजराती अर्थ :- हे भगवन्! आ मारी पुत्रिनो मनवल्लभ स्वामी कोण थशे ए प्रमाणेनी चिन्ताथी मारू मन हमेसा आकुल-व्याकुल रहे छे। हिन्दी अनुवाद :- हे भगवान! यह मेरी पुत्री का मनवल्लभ भर्त्ता कौन होगा? इस प्रकार की चिन्ता से मेरा मन निरंतर आकुलित रहता है। गाहा : ता मण-निव्वुइ-हेउं साहिज्जउ एस अम्ह (व) वुत्तंतो । पाणिग्गहणं तीए का किर विज्जाहरो काही? ।।८९।। संस्कृत छाया : तस्माद् मनो-निवृत्ति-हेतुं कथ्यतां एषो अस्माकं वृत्तान्तः | पाणिग्रहणं तस्याः कः किल विद्याधरः करिष्यति? ||८९।। गुजराती अर्थ :- तेथी मन नी शांतिने माटे आ वृत्तान्त मने कहो के तेणीनु पाणि-ग्रहण क्यो विद्याधर करशे? हिन्दी अनुवाद :- अत: मन की नि:वृत्ति हेतु मुझे कहिए कि इसका पाणिग्रहण कौन से विद्याधर के साथ होगा? 164 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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