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गाहा :
दाउं विज्जा - नियरं रज्जेण समं तु नियय- पुत्तस्स । नहवाहणस्स ततो करोमि गिह-वास चायंति ।।८४॥ संस्कृत छाया :
दत्त्वा विद्यानिकरं राज्येन समं तु निजकपुत्राय । नभोवाहनाय ततः करोमि गृहवास त्यागमिति ।। ८४ ।। गुजराती अर्थ :- मारा पुत्र नभवाहनने राज्य सहित विधिपूर्वक समस्त विद्या आपीने हुं गृहवासनो त्याग करीश (ए प्रमाणे कहयुं ।) हिन्दी अनुवाद :- और अपने पुत्र नभवाहन को राज्य सहित विधिपूर्वक समस्त विद्या देकर मैं गृहवास का त्याग करूंगा।
गाहा :
राज प्रश्न
एत्थंतरम्मि सुंदरि ! पत्थावं जाणिऊण पुच्छाए । विहिय पणामेण मए पुट्ठो मुणि- केवली एवं ।। ८५ । । संस्कृत छाया :
अत्रान्तरे हे सुन्दरि ! प्रस्तावं ज्ञात्वा पृच्छायाः । विहितप्रणामेन मया पृष्टो मुनि केवली एवम् । । ८५ । । गुजराती अर्थ :- तरतज ते समये हे सुन्दरि ! अवसर जाणीने प्रणाम करीने में आ प्रमाणे केवली भगवंतने पूछयु ।
हिन्दी अनुवाद हे सुन्दरी ! उसी समय पूछने का अवसर जानकर प्रणाम करके मैंने केवली भगवंत को इस प्रकार पूछा।
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गाहा :
लोयालोय - विलोयण- केवल नाणेण नाय- भावस्स । पच्चक्खं हि भयवओ एयं जमहं तु पुच्छिस्सं । ८६ ।। संस्कृत छाया :
लोकालोकविलोकन - केवलज्ञानेन ज्ञातभावस्य ।
प्रत्यक्षं खलु भगवत एतद् यदहं तु प्रक्ष्यामि ।। ८६ ।। गुजराती अर्थ :- लोकालोकने साक्षात् नीहाळनार एवा केवलज्ञानवड़े प्रत्यक्ष जाण्या छे समस्त भावोने जेमणे तेवा आप पूज्यपाद भगवंतने हुं आ प्रमाणे पूछें छु।
हिन्दी अनुवाद :- केवलज्ञान द्वारा लोकालोक को देखने से सम्पूर्ण पदार्थ के भावों को प्रत्यक्ष से जाननेवाले भगवंत ! मैं आपको इस प्रकार पूछता हूँ ।
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