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गाहा :
तम्हा कुणह पयत्तं दुलहं लद्धूण माणुसं जम्मं । जिण - इंद - भणिय- धम्मे सासय-सिव सोक्ख हेउम्मि ।। ८१ ।। संस्कृत छाया :
तस्मात् कुरु प्रयत्नं दुर्लभं लब्ध्वा मानुष्यं - जन्म | जिनेन्द्रभणित- धर्मे शाश्वत शिव-सौख्यं हेतौ ।।८१ ।। गुजराती अर्थ :- तेथी दुर्लभ एवा मनुष्यजन्मने पामीने शाश्वत - शिवसुखना कारण समान जिनेश्वर भगवंते कहेल धर्ममां प्रयत्न करो । हिन्दी अनुवाद :- अतः दुर्लभ मनुष्य जन्म मे शाश्वत - शिव-सुख के कारण रूप जिनेश्वर भगवंत प्ररूपित धर्म में यत्न कीजिए।
गाहा :
सावज्ज- कज्ज- वज्जण- रूवं परिगेण्हिऊण पव्वज्जं । खविऊण कम्म- सत्तुं सासय- सोक्खं वयह मोक्खं ।।८२।। संस्कृत छाया :
सावद्यकार्य-वर्जन- रूपां
परिगृह्य प्रवज्याम् ।
क्षपयित्वा कर्मशत्रुं शाश्वत सौख्यं व्रजत मोक्षम् ।।८२ ।। गुजराती अर्थ :- सावधकार्यना त्याग रूप प्रवज्याने स्वीकारीने कर्मशत्रुनो क्षय करीने शाश्वत सुखरुप मोक्ष ने पामो । हिन्दी अनुवाद :- सावद्यकार्य के त्याग रूप प्रवज्या को स्वीकार कर कर्मशत्रु का क्षय कर के शाश्वत सुख के धाम तुल्य मोक्ष को प्राप्त करो।
गाहा :
इय केवलिणा भणिए विणिवेसिय करयलंजलिं सीसे । वज्जरइ मंधवाहणराया उ तहत्ति जं भणह ||८३ । संस्कृत छाया :
इति केवलिना भणिते विनिवेश्य कर तलाञ्जलिं शीर्षे ।
कथयति गन्धवाहनराजा तु तथेति यद् भणत ।। ८३ ।। गुजराती अर्थ : :- आ प्रमाणे केवली भगवंते कहे छते मस्तक ऊपर अञ्जलि जोड़ीने गन्धवाहनराजा 'हे प्रभु। आप कहो छो तेम ज छे तेम बोल्या ।
हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार केवली भगवंत के उपदेश को सुनकर मस्तक पर अञ्जलि जोड़कर गन्धवाहनराजा ने इस प्रकार कहा- हे प्रभो! आप कहते हैं वैसा ही है।
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