________________
संस्कृत छाया :
तदनन्तरं च राजा विद्याधर-निकर-परिगतश्चलितः। जनकाय चित्रकूटे भक्त्या वन्दन-निमित्तम् ।।६२।। विद्याविरचित-वरविमानारूढ-परिजनानुगतः ।
शुभनैपथ्य-विराजित-नागरजन-परिगतः सहसा ।।६३|| युग्मम् ।। गुजराती अर्थ :- अने त्यारबाद विद्याधरना समूहथी परिवरेलो परिजनवड़े अनुसरातो, सुन्दर वस्त्रोथी शोभतो नगरजनोथी परिवरेलो राजा विद्याथी बनावेल श्रेष्ठ विमानमां आरूढ थयेलो सहसा चित्रकूट ऊपर भक्तिपूर्वक पिताजी मुनि ने वन्दन करवा माटे चाल्यो। हिन्दी अनुवाद :- उसके बाद विद्याधर के समूह से आवृत्त, परिजन द्वारा अनुसरित, सुन्दर वस्त्रों से सुशोभित, नगरजनों से परिवृत - पिता मुनिवर को भक्ति से वन्दन करने के लिए विद्या द्वारा रचित श्रेष्ठ विमान में जल्दी से आरूढ़ हुआ। गाहा :
तेण सहिओ अहंपि हु चलिओ मुणि- पाय-वंदण-निमित्तं ।
अह सव्वे संपत्ता आसन्ने चित्तकूडस्स ।।६४।। संस्कृत छाया :
तेन सहितोऽहमपि खलु चलितो मुनिपादवन्दननिमित्तम् ।
अथ सर्वे सम्प्राप्ता आसन्ने चित्रकूटस्य ।।६४।। गुजराती अर्थ :- नेनी साथे हुं पण मुनिभवंतना वन्दनमाटे गयो, अने बधा चित्रकूटनी नजीकमां पहोंच्या। हिन्दी अनुवाद :- उनके साथ मैं भी मुनिभगवन्त को वन्दन करने गया, और हम सभी चित्रकूट के पास में पहुंचे। गाहा :चउविह-देव-निकायं निवयंतं दटुं चित्तकूडम्मि । सविसेस-हरिसिय-मणो वियसिय-मुह-पंकओ राया ।।६५।। सिग्यतरं गंतूणं बहु-जण-परिवारिओ पयत्तेण । सुर-कय-केवलि-महिमं थुव्वंतं दिव्व-नारीहिं ।।६६।। दद्गुण मुणि-वरं तं काऊण पयाहिणं च तिक्खुत्तो । बहु-माण-वस-समुट्ठिय-रोमंच-चयंचिय-सरीरो ॥६७।। भूमि-तल-लुलिय- मउडं पंचंगं करिय ताहे पणिवायं । पहरिस-गलंत- नयणो अह एवं थुणिउमाढत्तो।।६८।। चतसृभिः कलापकम्।।
156
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org