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________________ गुजराती अर्थ :- हे संगत! तुं मारी पासे आव, आजे केवलज्ञाननी उत्पत्तियुक्त पिताजीना समाचार आपवा वड़े मारू जीवन सफल कर्यु छे । हिन्दी अनुवाद हे संगत! तूं मेरी पास आ, आज केवलज्ञान की उत्पत्तिसहित - पिताजी के समाचार से तूंने मेरा जीवन सफल बना दिया। गाहा : प्रीतिदान स- सरीर-परिहियं सो सव्वं आभरण- वत्थमाईयं । विलइय तस्स सरीरे तत्तो भंडारियं भणइ ।। ६० ।। संस्कृत छाया : स्वशरीर-परिहितं स सर्व माभरण वस्त्रादिकम् । विलगय्य तस्य शरीरे ततो भाण्डागारिकं भणति । । ६० ।। गुजराती अर्थ :- राजाए पोताना शरीर उपर धारण करेला, सर्व आभरण-वस्त्रादि ते कुमारना शरीर पर पहेरावीने त्यार पछी भाण्डागारिकने आ प्रमाणे कह्युं । हिन्दी अनुवाद :- राजा अपने शरीर पर धारित सभी आभरण-वस्त्रादि उस कुमार को पहनाकर भाण्डारिक को इस प्रकार कहता है। गाहा : अद्ध-त्तेरस - कोडी पवर- सुवन्नस्स देसु एयस्स । पीई - दाणं तत्तो तहत्ति संपाडियं तेण ।। ६१ ।। संस्कृत छाया : अर्ध त्रयोदश-कोटी प्रवरसुवर्णस्य देहि एतस्मै । प्रीतिदानं ततः तथेति सम्पादितं तेन ||६१ ।। गुजराती अर्थ : 'साडाबार क्रोड श्रेष्ठ सुवर्णमुद्रा आने प्रीतिदान रूपे आपो' अने भण्डारी वड़े पण 'तहत्ति' करीने ते वात स्वीकारायी । हिन्दी अनुवाद :- इस संगतकुमार को प्रीतिदान से साढ़े बारह करोड़ स्वर्णमुद्राएं दीजिए और भण्डारी ने भी 'तहत्ति' करके आज्ञा को स्वीकार ली। गाहा : मुनिवन्दन माटे प्रयाण तयणंतरं च राया विज्जाहर- नियर परिगओ चलिओ । जणयस्स चित्तकूडे भत्तीए वंदण - निमित्तं ।। ६२ ।। विज्जा - विरइय- वर विमाण- आरूढ - परियणाणुगओ । सुह-नेवत्थ- विराइय- नायर - जण - परिगओ - Jain Education International - 155 सहसा ।। ६३ ।। युग्मम् ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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