________________
गुजराती अर्थ :- ते आपना पिता सुरवाहन-विद्याधर मुनिवर आजे ज आ वैताठयगिरिना चित्रकूट शिखर ऊपर पधार्या छे। हिन्दी अनुवाद :- सुरवाहन विद्याधर मुनिवर आज ही इस वैताढ्यगिरि के चित्रकूट नामक शिखर पर पधारे हैं। गाहा :
केवलज्ञान नी प्राप्ति पडिमा-पतिवन्नस्सिह सुक्क-ज्झाणेण खविय-मोहस्स। लोयालोय-पयासं उप्पन्नं केवलं तस्स।।५७।। नवभिः कुलकम्।। संस्कृत छाया :प्रतिमा प्रतिपन्नस्य इह शुक्लध्यानेन क्षपितमोहस्य। लोकालोक-प्रकाश-मुत्पन्नं केवलं तस्य।।१७।। नवभिः कुलकम्।। गुजराती अर्थ :- अहीं प्रतिमाने धारणकरेला, अने शुक्लध्यान वड़े क्षयकरेला मोहनीयकर्मवाळा, लोक-अलोकने प्रकाश करनार तेमने केवलज्ञान उत्पन्न थयु छे। हिन्दी अनुवाद :- वहीं प्रतिमा को धारण करके, जिसने शुक्ल ध्यान से मोहनीय कर्म का क्षय किया है ऐसे मुनिवर को लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है। गाहा :
तत्तो य तस्स वयणं सोऊणं गंधवाहणो राया।
हरिस-वस-वियसियच्छो भणइ तयं सायरं एवं ।।५८।। संस्कृत छाया :__ ततश्च तस्य वचनं श्रुत्वा गन्धवाहनो राजा।
हर्षवशविकसिताक्षो भणति तकं सादरं एवम् ।।५८।। गुजराती अर्थ :- एवा तेना वचन सांभळीने हर्षयुक्त, विकसितनेत्रवाळा गन्धवाहन राजा आदरसहित आ प्रगाणे कहेवा लाग्या। हिन्दी अनुवाद :- ऐसे वचन सुनकर हर्ष से विकसित नेत्रवाले गन्धवाहन राजा ने आदरपूर्वक इस प्रकार कहा। गाहा :
भो आगच्छसु संगय! आसन्नो, अज्ज ताय-वत्ताए ।
सहलीकयं म्ह जीयं केवल-उप्पत्ति-गन्भाए ।।५९।। संस्कृत छाया :
भो आगच्छ संगत! आसन्नाद्य तात-वार्तया । सफलीकृतं मम जीवितं केवलोत्पत्तिगर्भया ।।५९।।
154
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org