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________________ गुजराती अर्थ :- श्रीऋषभदेवप्रभुए फरमावेल सर्वविरतिरूप चारित्रधर्मने श्री चित्रांगद मुनिवर समीपे स्वीकार्यो। हिन्दी अनुवाद :- श्री ऋषभदेवप्रभु से उपदेशित सर्वविरतिरूप चारित्रधर्म को श्रीचित्रांगद मुनिवर के पास स्वीकृत किया। गाहा : गहणा-5ऽसेवण-रूवं सिक्खं अब्भसिय गरु-समीवम्मि । अहिय-सुओ पडिवज्जिय एगल्ल-विहार-पडिमं सो।।५४।। संस्कृत छाया : ग्रहणासेवनरूपां शिक्षा अभ्यस्य गुरु समीपे । अधीतश्रुतः प्रतिपद्य एकाकीविहार-प्रतिमां सः ।।५४|| गुजराती अर्थ :- अने गुरु भगवंतनी समीपे ग्रहण-आसेवनरुप शिक्षानो तथा, शास्त्रोनो अभ्यास करीने, एकलविहारी प्रतिमाने स्वीकारीने - हिन्दी अनुवाद :- वे सुरवाहन मुनि गुरु भगवंत के पास ग्रहण - आसेवनरूप शिक्षा का एवं शास्त्रों का अभ्यास करके, एकलविहारी प्रतिमा स्वीकार करकेगाहा : छट्ठ-ट्ठम-दसम-दुवालसाइ-नाणाविहे तवो-कम्मे । उज्जुत्तो विहरंतो गामागर-मंडियं वसुहं ।।५५।। संस्कृत छाया : षष्ठ-अष्टम-दशम-द्वादशादिनानाविधे तपःकर्मणि । उद्युक्तो विहरन् ग्रामाकरमण्डितां वसुधाम् ।।५।। गुजराती अर्थ :- छट्ठ-अट्ठम-चार उपवास विगेरे अनेक प्रकारना तप धर्ममा उद्युक्त गाम-आकर आदिथी विभूषित पृथ्वीतल उपर विहार करताहिन्दी अनुवाद :- छट्ठ-अट्ठम-चार उपवास, पांच उपवास इत्यादि अनेक प्रकार के तपधर्म में उद्युक्त, सर्वश्रेष्ठ ग्राम आदि से विभूषित पृथ्वीतलपर विहरण करते हुएगाहा : संपत्तो एत्थेव य वेयड्डे चित्तकूड-सिहरम्मि। तुम्ह पिया सुरवाहण-विज्जाहर-मुणिवरो अज्ज ।।५६।। संस्कृत छाया : संप्राप्तोऽत्रैव च वैताढ्ये चित्रकूटशिखरे। तव पिता सुरवाहन-विद्याधर-मुनिवरो अद्य।।१६।। 153 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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