SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुजराती अर्थ :- जेणे समस्त विद्याओ सिद्ध करी छे- सुर-असुर - अने मानवलोकमां जे प्रसिद्ध छे, विद्याधरो मां चक्रवर्ती समान एवो सुरवाहन नामे राजा हता। हिन्दी अनुवाद :- जिसने समस्त विद्याएं सिद्ध की थीं, तथा सुर-असुर - मानव लोक में जो प्रसिद्ध थे और विद्याधरों में चक्रवर्ती समान सुरवाहन राजा थे गाहा : अवमाण- वज्जियं जो विज्जाहर राय - लच्छिमणुहविउं । बिक्खाय जसं पुत्तं नियय-पए ठाविऊण तुमं ।। ५१ ।। संस्कृत छाया : अपमानवर्जितं यो विद्याधर- राजलक्ष्मीं अनुभूय । विख्यातयशसं पुत्रं निजकपदे स्थापयित्वा त्वाम् ||५१।। गुजराती अर्थ :- अपमानरहितपणे विद्याधरनी राज्यलक्ष्मीने अनुभविने विख्यात यशवाळा पुत्ररुप आपने पोताना पद उपर स्थापन करीने - हिन्दी अनुवाद :- अपमान रहित विद्याधर की राज्यलक्ष्मी को भोगकर विख्यात यशवाले पुत्र रूप आप को अपने स्थान पर बैठाकर - गाहा : संसार - वास- भीओ नाऊण असारयं विभूईए । रज्ज - सिरिं अवउज्झिय पडग्ग- लग्गं जर तणंव ।। ५२ ।। - संस्कृत छाया : संसारवासभीतो ज्ञात्वा असारतां विभूत्याः । राज्यश्रियं उज्झित्वा पटाग्रलग्नं जर तृणमिव ।। ५२ ।। गुजराती अर्थ :- संसारवासथी डरेला, वैभवनी असारताने जाणीने, वस्त्रना अग्रभाग उपर रहेला तणखलानी जेम राज्य लक्ष्मीनो त्याग करीने - हिन्दी अनुवाद :संसारवास से भयभीत, वैभव की असारता को जानकर वस्त्र के अग्रभाग के ऊपर रहे तिनके की तरह राज्य लक्ष्मी का त्याग करके गाहा : सिरि-उसहनाह - जिणवर- वज्जरियं सव्व- विरइ- रूवं जो । चारित्तं चित्तंग - मुणि- वर - समीवे ।। ५३ ।। पडिवन्नो संस्कृत छाया : चारित्रं श्रीऋषभनाथजिनवर व्याहृतं सर्व-विरतिरूपं यः । चित्रांगद मुनिवरसमीपे || ५३|| प्रतिपन्नः Jain Education International - 152 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy