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________________ गुजराती अर्थ :- चित्रभानु अमारे आधीन छे वली हे पुत्रि! तुं कन्या छे तथा रुप अने कला वड़े तारे चित्रवेग ज उचित छ।। हिन्दी अनुवाद :- हे पुत्री! चित्रभानु हमारे अधीन है और तूं कन्या है तथा तुझे रूप एवं कला से युक्त चित्रवेग ही उचित है। गाहा : तस्स य उवरिं जाओ अणुरागो तुज्झ तेण सव्वंपि । अणुकूलमिणं जायं मा चिंतसु अन्नहा वच्छे! ।।३६।। संस्कृत छाया : तस्य चोपरि जातोऽनुरागः तव तेन सर्वमपि। अनुकूलमिदं जातं मा चिन्तय अन्यथा हे वत्से!||३६।। गुजराती अर्थ :- अने तेनी उपर ज तने अनुराग थ्रयो छे माटे बधु अनुकूल ज थयु छ। हे वत्से! तेथी तुं अन्यथा काई वीचार न कर। हिन्दी अनुवाद :- और उसके ऊपर ही तेरा अनुराग भी है अत: सब कुछ ठीक ही हुआ है इसलिये हे वत्से! तूं अन्यथा कुछ भी मत सोच। गाहा : किंतु तुह पुत्ति! जणओ गंगावत्तम्मि खयर-नयरम्मि । पासम्मि गंधवाहण-विज्जाहर-राइणो हु गओ ।।३७।। संस्कृत छाया : किन्तु तव हे पुत्रि! जनको गङ्गावर्ते खेचरनगरे । पार्श्वे गन्धवाहनविद्याधरराज्ञः खलु गतः ।।३७।। गुजराती अर्थ :- परन्तु हे पुत्रि! तारा पिता गडावर्तनामे विद्याधरनगरमां गन्धवाहन विद्याधर राजानी पासे गया छ। हिन्दी अनुवाद :- किन्तु हे पुत्री! तेरे पिता गङ्गावर्त नामक विद्याधरनगर में गन्धवाहन राजा के पास गये हैं। गाहा: आगच्छउ सों सिग्धं कुसलेणं ताहे तुज्झ वीवाहं । महया विच्छड्डेणं कारिस्सइ चित्तवेगेण ।। ३८।। संस्कृत छाया : आगच्छतु स शीघ्रं कुशलेन तदा तव विवाहम् । महता विच्छन करिष्यति चित्रवेगेन ।।३८।। 147 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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