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हिन्दी अनुवाद :- तत्पश्चात् मैंने चित्रमाला माता के पास जाकर, एकान्त में वह सभी वृत्तान्त सुनाया। गाहा :
विनाय-सरूवत्था पासे आगम्म कणगमालाए ।
वज्जरइ चित्तमाला कीस तुमं पुत्ति! उव्विग्गा?।।३३।। संस्कृत छाया :
विज्ञात स्वरूपार्था पार्श्वे आगत्य कनकमालायाः।
कथयति चित्रमाला कस्मात्त्वं हे पुत्रि! उद्विग्ना? ||३३।। गुजराती अर्थ :- साची हकिकतने जाणनारी चित्रमाला कनकमाला नी पासे आवीने कहे छे के, “हे पुत्रि! तुं शा कारणथी उद्विग्न छे"? । हिन्दी अनुवाद :- सही स्थिति की जानकार चित्रमाला कनकमाला के पास आकर कहने लगी कि, “हे! पुत्री! तूं उद्विग्न क्यों है''? गाहा :
अच्छसि ओसन्न- मुही भणियावि हु कीस देसि नालावं? । । सुह-सज्झं चेव इमं मा पुत्ति! विसायमुव्वहसु ।।३४।। संस्कृत छाया :आस्से, अवसनमुखी भणितापि खलु कस्माद् ददासि नालापम् । सुखसाध्यं चैवेदं मा पुत्रि! विषाद-मुद्वह ।।३४।। गुजराती अर्थ :- खिन्नमुखवाळी थइने बेठी छे अने पूछवा छतसं पण तुं केम कांई बोलती नथी? हे पुत्रि! आ विषय सुख-साध्य छे ते थी तुं विषादने धारण न कर। हिन्दी अनुवाद :- हे पुत्री, पूछने पर भी तुं कुछ भी प्रत्युत्तर क्यों नहीं देती है और खिनमुखवाली बैठी है, मगर यह विषय तो सुखसाध्य ही है, अत: तूं विषाद को धारण मत कर। गाहा :
अम्हाण चित्तभाणू आयत्तो तं च पुत्ति कन्ना सि ।
उचिओ य चित्तवेगो रूवेणं कलाहिं ज तुज्झ ।।३५।। संस्कृत छाया :
अस्माकं चित्रभानु-रायत्तः त्वं च पुत्रि! कन्यासि। उचितश्च चित्रवेगो रूपेण कलाभि-र्यत्तव ।।३५।।
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