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________________ गाहा: तुह विरहे गय-चेटुं दट्ठणं ताव कणगमालं तु । । • चूयलया कल्लम्मि पट्टविया तुम्ह पासम्मि ।। २७।। संस्कृत छाया : तव विरहे गतचेष्टां दृष्ट्वा तावत्कनकमालां तु ।। चूतलता कल्ये प्रस्थापिता तव पार्श्वे ।।२७।। गुजराती अर्थ :- तारा विरहमां मूर्छित पामेली कनकमालाने जोईने मे गई काले तारी पासे चूतलता ने मोकली हती। हिन्दी अनुवाद :- तेरे विरह से मूर्च्छित कनकमाला को देखकर मैंने तेरे पास कल ही चूतलता को भेजा था। गाहा : सावि हु सहीहिं कहवि तुह संगम-सूयगेहिं वयणेहिं । आसासियावि वरई तुह संगमपावमाणा उ ।।२८।। संस्कृत छाया : सापि खलु सखीभिः कथमपि तव संगम-सूचकै वचनैः । आश्वासितापि वराकी' तव संगममप्राप्नुवती तु।।२८।। गुजराती अर्थ :- ते पण तारा संगमना सूचक वचनो बोलवापूर्वक सखीओ बड़े आश्वासन अपायु होवा छता ते बिचारी तारा समागमने नहीं पामती। हिन्दी अनुवाद :- उसे भी तेरे समागम के सूचक वचन बोलकर सखिओं के द्वारा आश्वासन दिया गया फिर भी निरीहा (बेचारी) तुम्हारे समागम को प्राप्त नहीं कर सकीं। गाहा : खणमेत्तं मुच्छिज्जइ उट्ठियइ पुणोवि मुयइ हुंकारे । गायइ हसइ य वेवइ रोवइ य खणेण उत्तसइ ।। २९।। संस्कृत छाया :क्षणमात्रं मूर्च्छति उत्तिष्ठति पुनरपि मुञ्चति हुंकारान् । गायति हसति च वेपते रोदिति च क्षणेनोत्त्रसति ||२९|| गुजराती अर्थ :- ते थी पलवारमा जमूर्छा पामे छे वळी उभी थाय छे अने निःश्वास छोडे छे, गाय छे, हसे छे, रडे छे अने वळी क्षणमा त्रास पामे छ। हिन्दी अनुवाद :- अत: एक क्षण मूर्च्छित होती है, खड़ी होती है, पुन: हुंकार करती है, गीत गाती है, हंसती है, कांपती है, रोती है, पुनः भय से त्रस्त हो जाती है। १. वराक बीचारी 144 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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