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________________ गाहा : सोमलता नुं आगमन पुणरवि सा सोमलया समागया किंचि हरिसियाव मणे । उवविट्ठा मं संस्कृत छाया : पुनरपि सा सोमलता समागता किञ्चिद् हर्षितेव मनसि । उपविष्टा मां दृष्ट्वा सुष्ठु विषादातुरं तदा ||२४|| युग्मम् ।। गुजराती अर्थ त्यारे फरीथी ने सोमलता मनमा कांईक हर्षघेली थयेली मारी पासे आवी अने त्यारे मने अतिशय खिन्न जोइने बेठी। हिन्दी अनुवाद :- तब मानो कुछ हर्षित मनवाली सोमलता पुनः मेरे पास आयी और फिर मुझे अत्यंत विषादातुर देखकर बैठी । गाहा : दट्ठ सुटुं विसायाउरं तइया ।। २४ ।। युग्मम् । । - ता भाइ कीस सुंदर! सुणिउं वरणय- वत्तं ? Jain Education International दीससि तं दुम्मणोव्व अच्चत्थं । ताव निसामेसु मह वयणं ।। २५ ।। संस्कृत छाया : ततो भणति कस्माद् हे सुन्दर ! दृश्यसे त्वं दुर्मना इवात्यर्थम् । श्रुत्वा वरणवार्तां तावद् निःशृणुत मम वचनम् ।।२५।। गुजराती अर्थ :- त्यारपछी कहे छे के हे सुन्दर ! तुं दुर्मनस्क केम देखाय छे? लग्ननी वात सांभळी ने दुःखी थयो होय तो मारा वचनने सांभळ । हिन्दी अनुवाद :- फिर उसने मुझसे कहा - हे सुन्दर ! तुम क्यों दुर्मनस्क जैसे लगते हो ? यदि शादी की बात सुनकर तुम्हे चोट लगी है तो अब मेरी बात सुनो! गाहा : आशाबंधन भणियं च मए अज्जवि किं आसा कावि अत्थि अम्हाण । वज्जरसि जेण एवं सोमलए!, ताहि सा भणइ ।। २६ । । संस्कृत छाया : भणितं च मया अद्यापि किं आशा कापि अस्ति अस्माकम् | कथयसि येन एवं हे सोमलते! तदा सा भणति ।। २६ ।। गुजराती अर्थ अने में पूछयु के हे सोमलते! शुं अत्यारे पण अमने कोई आशा छे, जे थी तुं आ प्रमाणे कहे छे? त्यारे ते कहे छे। हिन्दी अनुवाद :- और मैने पूछा ! हे सोमलते! अभी भी क्या कोई आशा है ? जिस कारण से तूं ऐसा बोलती है, तब वह बोलती है। 143 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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