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________________ गाहा :खण-परिचिय-दुल्लह-लोय-कारणे कीस हियय! तं मिहसि? । मुंचसु गरुय-विसायं विवरीओ हय-विही जेण ।।२१।। संस्कृत छाया :क्षणपरिचित-दुर्लभलोक-कारणे कस्माद् हे हृदय! त्वं स्निह्यसि ?। मुञ्च गुरूक-विषादं विपरीतोः हत-विधिर्येन ।।२१।। गुजराती अर्थ :- हे हृदय! क्षणपरिचित अने दुर्लभ दर्शनवाली वस्तु पर तुं केम स्नेह करे छे? कारण के निर्लज्ज विधि विपरीत छे ते थी तुं मोटा विषाद ने छोड़ी दे।। हिन्दी अनुवाद :- हे हृदय? क्षणपरिचित व दुर्लभ दर्शनवाली वस्तु के ऊपर तूं स्नेह क्यों करता है? तूं इस भारी विषाद को छोड़ दे, क्योंकि बेशरम भाग्य प्रतिकूल है। गाहा : एरिस-दुव्विसहेवि हु संजाए हिययं! गरुय-दुक्खम्मि । वज्ज-घडियंव मन्ने जं नवि सय-सिक्करं जासि ।।२२।। संस्कृत छाया : ईदृशदुर्विसहेऽपि खलु सजाते हे हृदयं! गुरुदुःखे । २ वज्रघटितमिव मन्ये यद् नापि शतशर्करं यासि ।।२२।। गुजराती अर्थ :- हे हृदय! तुं वज़ थी घडायेलु छे एम हुं मानु छु केम के सहन न थइ शके आवा प्रकार नुं मोटु दुःख आवे छते पण तारा सो टुकडा नथी थता। हिन्दी अनुवाद :- हे हृदय! तूं वज्र से घटित है ऐसा मुझे लगता है, क्योंकि ऐसा असह्य दुःख आने पर भी तूं शतखण्ड नहीं होता। गाहा : एमाइ- बहु-विगप्पं चिंतेमाणस्स गरुय-सोगस्स । तव्विरह-दूमिय-माणसस्स तइया महं कुमर! ।। २३।। संस्कृत छाया :___ एवमादिबहुविकल्पं चिन्त्यमानस्य गुरुशोकस्य । तद्विरह-दावित'-मानसस्य तदा मे हे कुमार! ||२३|| गुजराती अर्थ :- हे कुमार! आ प्रमाणे घणा विकल्पोने विचारतो, शोकथी भारे थयेलो अने, तेणीना विरह थी दुःखी मनवाळो त्यारे हुँथयो! हिन्दी अनुवाद :- हे कुमार! उस समय बहुत सारे विकल्पों से घिरा हुआ, शोक से आक्रान्त, और कनकमाला के विरह से मेरा मन बहुत दुःखी बन गया। ११. मेघसे २. पीड़ित _____142 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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