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गाहा :
पुव्वंपि हु जइ बुद्धी एरिसया आसि तुज्झ रे दिव्व ! ।
ता कह मह पढमं चिय तीए सह दंसणं विहियं ? ।। १८ ।। संस्कृत छाया :
पूर्वमपि खलु यदि बुद्धिः ईदृश्यासीत् तव रे दैव !
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ततः कथं मम प्रथमं एव तया सह दर्शनं विहितम् ? ||१८|| गुजराती अर्थ हे दैव ! पहेला पण जो तारी बुद्धि निश्चे आवी ज हती तो तारा वडे पहेला ज तेणी नुं दर्शन शा माटे करवामां आव्युं? | हिन्दी अनुवाद हे दैव ! पहले से ही तेरी मति निश्चित ऐसी ही थी तो पहले ही तुझने उसका दर्शन क्यों किया ? |
गाहा :
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काऊण दंसणं गरुय - राय सहियं हयास! रे! दिव्ब ! | अन्नत्थ तं मयच्छिं जोडेंतो किं न लज्जिहिसि ? ।। १९।। संस्कृत छाया :
कृत्वा दर्शनं गुरुक-राग-सहितं हताश ! रे! दैव ! |
अन्यत्र तां मृगाक्षीं योजयन् किं न लज्जिष्यसि ? ||१९|| गुजराती अर्थ :- हे हताश ! भाग्य ! गाढ़राग सहित तेणीनुं दर्शनं करीने ते मृगाक्षीने बीजे जोडतो तुं शुं लज्जा नहिं पामशे? | हिन्दी अनुवाद :- हे भाग्यहीन ! भाग्य ! पहले गाढ़ (प्रबल) अनुराग युक्त उसका दर्शन करके अब वह मृगाक्षी अन्य को अर्पित करता हुआ तूं क्या लज्जित नहीं होगा ? |
गाहा :
अवि य
नयणाण पडउ वज्जं अहवा वज्जस्स वड्डिलं किंपि । अमुणिय-जणेवि दिट्ठे अणुबंधं जाणि कुव्वंति ।। २० ।। अपि च
संस्कृत छाया :
नयनानां पततु वज्रं अथवा वज्रादपि महत्किमपि । अज्ञातजनेऽपि दृष्टेऽनुबन्धं यानि कुर्वन्ति ||२०|| गुजराती अर्थ :- तो पण
बधी आँखो पर वज्र पडे अथवा वज्रथी पण मोटु कोई शस्त्र पडे. के जेओ (आँखो) अज्ञात - जनने जोड़ने पण तेना पर अनुराग करे छे । हिन्दी अनुवाद :सर्व नयनों पर वज्र गिरे या वज्र से भी भारी अन्य कोई शस्त्र गिरे, जो अज्ञात जन को भी देखकर उसपर अनुराग करते हैं ।
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