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________________ संस्कृत छाया : परिचिन्तयितुं प्रयतः प्रेक्षध्वं दुर्विहित-विलसितं विधेः । प्रियसङ्गमनोरथभ्रंशने उद्युक्तचित्तस्य ||१५|| गुजराती अर्थ :- हुँ विचारवा लाग्यो वे प्रियाना मिलन माटे ना मारा मनोरथने मांगवामां तत्पर मनवाला विधातानी दुष्ट लीलाने जुओ!! हिन्दी अनुवाद :- मै सोचने लगा कि, प्रिया संग के मेरे मनोरथ को तोड़ने में तत्पर मन वाले विधाता की दुष्ट लीला को देखो !! गाहा : अहवा अनह परिचिंतिज्जइ सहरिस-कंडुज्जएण हियएण । परिणमइ अन्नहच्चिय कज्जारंभो विहि-वसेण ।।१६।। संस्कृत छाया:- अथवा अन्यथा परिचिन्त्यते सहर्ष - कण्डुयमानेन हृदयेन । परिणमति अन्यथा चैव कार्यारम्भो विधिवशेन ।।१६।। गुजराती अर्थ :- हर्षसहित उत्कंठित हृदय कंडक अन्य चिन्तवे छे ज्यारे भाग्ययोगे कार्यारंभ कोइ अन्य प्रकारे ज परिणमे छ। हिन्दी अनुवाद :- व्यक्ति हर्षयुक्त कुतूहल हृदय से कुछ अन्य सोचता है जबकि भाग्य-योग से कार्यारम्भ कुछ अन्य ही होता है। गाहा : कत्थ इमा कत्थ अहं अन्नोन्नं कत्थ गरुय-अणुरागो। नवरं हयास-विहिणा सव्वं चिय अन्नहा विहिय।।१७।। संस्कृत छाया : कुत्रेयं कुत्राहं अन्योन्यं कुत्र' गुर्वनुरागः ।। नवरं हताश-विधिना सर्वमेवान्यथा विहितम् ।।१७।। गुजराती अर्थ :- आ क्या? हुँ क्याँ? परस्पर एक बीजानो दृढ़ अनुराठा क्यां? परन्तु हणायेला विधिवड़े बधु ज अन्यथा करायु। हिन्दी अनुवाद :- वह कहाँ? मैं कहाँ? परस्पर एक दूसरे का दृढ़ अनुराग कहाँ? परन्तु हताश भाग्य के द्वारा सब कुछ विपरीत किया गया! १. कुतो 140 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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