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________________ संस्कृत छाया : एवं विज्ञाय समागता अत्र तव पार्श्वे । कर्णकटुकमपि तुभ्यं कथ्यते मन्दभाग्यया ।।१२।। गुजराती अर्थ :- आ प्रमाणे जाणीने अहीं तारी पासे आवीने मंदभाग्यवाळी ओवी हुं कर्णकटु वात पण तने कहुं छु। हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार जानकर तुम्हारे पास आयी हूँ और मन्दभाग्या मैं कर्ण कटु बात तूझे सुनाती हूँ। गाहा : चित्रवेग नी मूर्च्छा तीए वयणं सोउं धसत्ति गुरु- मोग्गरेण पहओ हं । मुच्छा-निमीलियच्छो पडिओ भूमीए गय- · चेट्ठो ।। १३ ।। संस्कृत छाया : · तस्याः वचनं श्रुत्वा धसेति गुरुमुद्गरेण प्रहतोऽहम् । मूर्च्छा-निमीलिताक्षः पतितो भूमौ गतचेष्टः ।।१३।। गुजराती अर्थ :- तेणी ना वचन सांभळी ने जाणे मोटा मुद्गर वड़े हणायेलो हुँ, मूर्च्छाथी मींचायेली आँखवाळो अने गयेली चेष्टावाळो “धस" ए प्रमाणे पृथ्वी पर पड्यो । हिन्दी अनुवाद :- उसका वचन सुनकर मानो बड़े मुद्गर से प्रहारित मैं मूर्च्छा मिलित नयनवाला निश्चेष्ट होकर "धस" इस प्रकार से पृथ्वी पर गिर पड़ा। गाहा : घणसार- सार - गोसीस मीस - सलिलेण ताहि संसित्तो । सुकुमाल - तालविटय- सीयल-पवणेण संस्कृत छाया : संसिक्तः । घनसारसारगोशीर्षमिश्रसलिलेन तदा सुकुमार-तालवृन्तक-‍ 5- शीतलपवनेन गतमूर्च्छः ।।१४।। गुजराती अर्थ :- ते वखते कपूर-चंदनथी मिश्रित पाणीवड़े सिञ्चायेलो हूँ, कोमल पंखाना शीतल - पवनवड़े मूर्च्छारहित थयो । हिन्दी अनुवाद :- उस समय कपूर-चंदन से मिश्रित पानी द्वारा सिञ्चित किए जाने पर एवं कोमल पंखें के शीतल पवन द्वारा मैं मूर्च्छारहित बना। गाहा : Jain Education International गय - मुच्छो ।।१४।। दैवने उपालंभ परिचिंतिउं पयत्तो पेच्छह दुव्विहिय- विलासियं विहिणो । पिय- संग- मणोरह - भंसणम्मि 139 उज्जुत्त-चित्तस्स ।। १५ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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