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________________ संस्कृत छाया : अत्रान्तरे निःश्रुतो मंगल-तूर्यस्य गंभीर-निर्घोषः । पृष्टश्च मया भ्राता कुत्र इदं वाद्यते तूर्यम्? ||३|| गुजराती अर्थ :- एटलीवारमा मंगलवाजींत्रनो मोटो अवाज में सांभल्यो अने में भाईने पूछयु के आ वाजींत्र क्यां वागे छे? हिन्दी अनुवाद :- तभी मंगल बाजींत्र की गम्भीर ध्वनि मुझे सुनाई दी और मैने भाई से पूछा कि "यह बाजा कहाँ बज रहा है।" गाहा : तो भणइ भाणुवेगो सम्मं जाणे न कारणं एत्थं । नवरं अमियगइ-गिहे भाविज्जइ एस तूर-रवो।।४।। संस्कृत छाया : ततो भणति भानुवेगः सम्यग्जानामि न कारणमत्र नवरं अमितगतिगृहे भाव्यते एषः तूर्यरवः।।४| गुजराती अर्थ :- त्यारे भानुवेग कहे छे के हुँ आनु कारण सारी सीते जाणतो नथी, परंतु आ वाजींत्रनो आवाज अमितगतिना घरमां थतो होय एम लागे छे। । हिन्दी अनुवाद :- तब भानुवेग ने मुझे कहा कि इसका कारण मैं अच्छी तरह से नहीं जानता हूँ किन्तु अमितगति राजा के घर में यह वाद्य यंत्र की आवाज होने की सम्भावना है। गाहा : अह चिंतियं मए किं आसन्न-पिया-समागमस्सावि । अब्भहिओ संतावो फुरइ य वामं तहा नयणं? ।।५।। संस्कृत छाया : अथ चिन्तितं मया किमासनप्रियासमागमस्यापि । अभ्यधिकः सन्तापः स्फुरति च वाम तथा नयनम् ? ||५|| गुजराती अर्थ :- हवे मारावड़े विचायु के शुं समीप आवेल प्रियानो समागम पण अत्यंत सन्ताप करनारो छे? अने वली मारू वामनेत्र पण फरके छे। हिन्दी अनुवाद :- अब मैं सोचने लगा कि पास आयी प्रिया का समागम भी क्या दुःखदायक है? और मेरा वामनेत्र भी स्पन्दित हो रहा है। गाहा : ता भवियव्वं केणवि एत्थ नणु कारणेण ताहे मए । चूयलया वाहरिया समागया अह इमं भणिया ।।६।। 136 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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