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________________ साहित्य सत्कार : १२७ वर्णन वहाँ भी नहीं मिलता है। इसी प्रकार पं० आशाधर के ग्रन्थों में भी कुछ विधि-विधानों की चर्चा की गयी है परन्तु षोडश संस्कारों का वहाँ भी अभाव है । इस दृष्टि से प्रस्तुत ग्रन्थ आचार दिनकर गर्भ धारण से लेकर अन्त्य संस्कारों का अर्थात् जन्म ग्रहण करने से लेकर अन्त्येष्टि तक के सभी संस्कारों के विधिविधानों की विस्तारपूर्वक चर्चा करने वाला प्रथम ग्रन्थ है। प्रस्तुत ग्रन्थ चालीस उदयों में विभाजित है जिसे विर्धमान सूरि ने तीन भागों में विभाजित किया है- प्रथम खण्ड में गृहस्थों के षोडश संस्कारों एवं दूसरे खण्ड में मुनि जीवन से सम्बन्धित षोडश संस्कारों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार यह ग्रन्थ जैन परम्परा के श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही आम्नाय में षोडश संस्कारों का वर्णन करनेवाला अद्वितीय ग्रन्थ है। वर्धमान सूरि ने इस ग्रन्थ में षोडश संस्कारों में से ब्रह्मचर्य को छोड़कर शेष पन्द्रह संस्कारों को गृहस्थों को करने की अनुमति प्रदान करके एक व्यापक दृष्टिकोण का परिचय देते हुए तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था में प्रचलित विधिविधानों का व्यवस्थित विवेचन प्रस्तुत किया है। इन विशेषताओं के कारण ही यह ग्रन्थ गृहस्थों के लिये अत्यन्त उपादेय है। इस ग्रन्थ के हिन्दी अनुवाद का प्रमुख कार्य कर साध्वी मोक्ष रत्ना जी प्रशंसनीय कार्य किया है। आपने पाठकों के ज्ञान भण्डार में अमूल्य वृद्धि की है। विद्वान लेखिका से यह अपेक्षा है कि इसी प्रकार वे साहित्य के प्रकाशन और अनुशीलन में रुचि लेते हुए जिनशासन के श्रुतसाहित्य में अभिवृद्धि करती रहेंगी। ग्रंथ की वाह्याकृति आकर्षक व मुद्रण सत्वर है। डा० शारदा सिंह 2. आचार दिनकर द्वितीय खण्ड, जैन मुनि जीवन के विधि विधान, लेखक - वर्धमानसूरि, अनुवादक - साध्वी मोक्षरत्ना श्रीजी, सम्पादक- प्रो० सागरमल जैन, प्रकाशक- प्राच्य विद्यापीठ, दुपाड़ा रोड, शाजापुर (म. प्र. ) प्रथम संस्करण- फरवरी 2006, पृ. 193 मूल्य - 50 रुपये, साइज-डिमाई आचार्य वर्धमान सूरि कृत प्रस्तुत ग्रन्थ संस्कृत व प्राकृत भाषा में है। इसके हिन्दी अनुवाद का महत्त्वपूर्ण कार्य साध्वी मोक्षरत्ना श्रीजी ने सम्पन्न किया है। जैन परम्परा में मुनि जीवन से सम्बन्धित ग्रन्थों की एक विस्तृत श्रृंखला है जिनमें विधिमार्गप्रपा, समाचारी, सुबोध- समाचारी आदि ग्रन्थ हैं। इनमें मुनि जीवन से सम्बन्धित विधि-विधानों के उल्लेख तो मिलता है किन्तु उन ग्रन्थों में मुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525058
Book TitleSramana 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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