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साहित्य सत्कार
पुस्तक समीक्षा
1. आचार दिनकर प्रथम खण्ड, जैन गृहस्थ की षोडश संस्कार विधि, लेखक- आचार्य धर्ममान सूरि, अनुवादक - साध्वी मोक्षरत्ना श्रीजी, सम्पादक - प्र० सागरमल जैन, प्रकाशक - प्राच्य विद्यापीठ, दुपाड़ा, रोड, शाजापुर (म.प्र.) पृ. 136, प्रथम संस्करण सितम्बर - 2005, मूल्य 40 रुपये, साइज डिमाई ।
आचार्य वर्धमान सूरि कृत प्रस्तुत ग्रन्थ संस्कृत और प्राकृत भाषा में रचित है । यद्यपि अपने मूल भाषा में यह ग्रन्थ पहले भी प्रकाशित हुआ था किन्तु भाषा की क्लिष्टता के कारण पाठक वर्ग में उतना लोकप्रिय नहीं हो पाया जितना अपेक्षित था।
श्रमण, वर्ष ५७, अंक २ अप्रैल-जून २००६
यद्यपि अभी तक अनेकों ग्रन्थ गृहस्थ चर्या पर प्रकाशित हो चुके हैं किन्तु उन ग्रन्थों में जैन गृहस्थ आचार के सामान्यतः प्रचलित विधि-विधानों यथा पौषध, प्रतिक्रमण, उपधान, सामायिक का ही विवेचन मुख्य रहा है और गृहस्थों के अन्य संस्कार प्रायः गौड हैं।
जहाँ तक जैन आगमों का प्रश्न है उसमें गृहस्थ के षोडश संस्कारों की समुचित व्याख्या का अभाव ही दृष्टिगत होता है और जहां कहीं किन्हीं संस्कारों का वर्णन प्राप्त भी होता है, वहाँ संस्कारों का मात्र नामोल्लेख ही है । ऐसा नहीं है कि श्रावकों के संस्कार सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना हुई ही नहीं । आगमिक काल के पश्चात् इस प्रकार के ग्रन्थ निर्मित होने लगे थे किन्तु उनमें भी षोडश संस्कारों का कोई उल्लेख हमें नहीं मिलता है वरन् उन संस्कारों के विधि-विधान का मात्र संसूचनात्मक निर्देश ही मिलता है जो यह सिद्ध करता है कि जैन परम्परा में भी संस्कार सम्बन्धी कुछ विधान अवश्य किये जाते थे।
श्वेताम्बर परम्परा में आचार्य हरिभद्र के अष्टप्रकरण, पंचाशक प्रकरण, पंचवस्तु आदि ग्रन्थों में भी कुछ विधि-विधानों का उल्लेख किया गया है किन्तु एक तो वह अत्यन्त संक्षिप्त हैं दूसरे उनमें मुनि जीवन के ही आचार सम्बन्धी कुछ संस्कारों का वर्णन किया गया है। गृहस्थ के षोडश संस्कारों का सुव्यवस्थित
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