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६ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक २ / अप्रैल-जून २००६ एस उत्तर वादे, इह माणवाणं वियाहिते। एत्थो-वरए तं झोसमाणे। आयाणिज्जं परिण्णाय, परियाएण विगिंचइ। इहमेगेसिं एगचरिया होति। तत्थियराइयरेहिं कुलेहिं सुद्धे सणाए सव्वेसणाए। से मेहावी परिव्वए। सुन्भिं अदुवा दुब्भिं अदुवा तत्थ भेरवा पाणपाणे किलेसंति। ते फासे पुट्ठो धीरो अहियासेज्जासि। उवगरणपरिच्चायधुत, पदं
एयं खु मुणी आयाणं सया सुअक्खायधम्मे विधूतकप्पे णिज्झोसइत्ता। जे अचेले परिवुसिए, तस्स णं भिक्खुस्स णो एवं भवइ-परिजुण्णे मे वत्थे वत्थं जाइस्सामि, सुत्तं जाइस्सामि, सूइं जाइस्सामि, संधिस्सामि सोवीस्सामि, उक्का सिस्सामि, वोक्कसिस्सामि परिहिस्सामि, पाउणिस्सामि।
अदुवा तत्थपरक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीय-फासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंसमसगफासा फुसंति। एगयरे अण्णयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले। ... लाघवं आगममाणे। तवे से अभिसामण्णागए भवति। जहेयं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया।
जो साधु धर्म को जानता है उस पर आचरण करता है और बाह्य आचरण की भी रक्षा करता है, सांसारिकता से दूर दृढ़ रहता है, सारे लोभ आकांक्षाओं को जानकर छोड़ता है, वह महामुनि हो जाता है। वह सारे बंधन तोड़ देता है, सोचता है कि कुछ भी मेरा नहीं है- केवल एक मैं हूं इस प्रकार विरत हो जाता है, अनगार होकर मुंडित होकर विहार करता है, अचेल साधु व्रत करता हुआ देह से संघर्ष करता है। उसे लोग गाली देंगे, प्रहार करेंगे और असत्य दोषारोपण करेंगे- इन सबको पूर्व जन्म का फल समझ कर सुख दुःख में समभाव रख कर शांति से विचरण करता है, सांसारिकता को छोड़कर सब कुछ सहन करता हुआ सम्यक् दर्शन को बार-बार धारण करता है।
हे मानवो !वही नग्न है जो सांसारिकता से निवृत्त होकर मेरे द्वारा दर्शित धर्म को धारण करते हैं, यह उच्चतम धर्म मानवों के लिए विहित किया गया है। इस बात से हर्षित होकर कर्मों का नाश करते हुए धूतवादी मुनि कर्मों का क्षय करने हेतु एकल विहारी प्रतिमां अंगीकार करता है। इसलिए वही मुनि है। बुद्धिमान लोगों को श्रमण का जीवन बिताना चाहिए, शुद्ध भिक्षा ग्रहण करना चाहिए, सभी प्रकार के परिवारों से आहार चाहे सुगंधित हो या दुर्गंधवाला। दुष्ट प्राणी दूसरे प्राणियों को दुःख पहुँचाते हैं यदि यह सब आपके साथ हो तो मेरा
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