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श्वेताम्बर आगम और दिगम्बरत्व : ५
पर्याय वाला मरण हितकर्ता है वैसे ही यह वेहानसादिक मरण हितकर्ता है | ) इस तरह मरण करने वाला मुक्ति को जाता है। इस तरह यह वेहानसादि, मरण मोह रहित पुरुषों का कृत्य है, हितकर्ता है, सुख कर्ता है, योग्य है, कर्मक्षय करने वाला है और उसका फल भी भवान्तर में साथ रहता है, ऐसा मैं कहता हूं।
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किसी साधु को एक पात्र और दो वस्त्र रखने का नियम हो तो उसको ऐसा विचार नहीं होना चाहिए कि मैं तीसरे वस्त्र की याचना करूं। यदि इतने वस्त्र नहीं हों तो जैसा मिले वैसा शुद्ध निर्दोष वस्त्र मांग कर धारण करनायही साधु का आचार है। जब साधु को ऐसा लगे कि शीतकाल व्यतीत हुआ है ग्रीष्म ऋतु आ गई है इसलिए मेरे पास के दो वस्त्रों में से खराब वस्त्र डाल दूँ, और अच्छा वस्त्र रखूं या लम्बे को कम करने या एक ही वस्त्र रखूं या वस्त्र रहित रहूं तो ऐसा करने में लाघव धर्म होता है। इसे तप कहा गया है इसलिए जैसा भगवान ने कहा है वैसा जानकर वस्त्र रहितपने में और वस्त्र सहितपने में समभाव रखना।
जिस साधु को एक पात्र के साथ एक ही वस्त्र रखने की प्रतिज्ञा हो उनको ऐसी चिन्ता नहीं होनी चाहिए कि दूसरा वस्त्र रखूं। यदि वस्त्र न हो तो शुद्ध वस्त्र की याचना करे, जैसा मिले वैसा पहिने । उष्ण ऋतु आने पर या तो एक वस्त्र युक्त रहे या वस्त्र रहित रहे तथा विचार करे कि मैं अकेला हूं, मेरा कोई नहीं है, ऐसी एकत्व भावना भाता हुआ अपने सदृश सबको जाने उससे लाघव धर्म की प्राप्ति होती है और इसी से तप होता है। इसलिए जैसा भगवान ने कहा वैसा ही जानकर समभाव रखना।
(३) आयारो (आचारांग ) सूत्र में लिखा है - अहेगे धम्म मादाय आयाणप्पभिई सुपणिहिए चरे, अपलीयमाण दढे । सव्वं गेहिं परिण्णाय, एस पणए महामुनी । अइअच्च सव्वतो संगं “ण महं अत्थित्ति इति एगोहमंसि" जमा थविर अणगारे सव्वओ मुंडे रीयंते जे अचेले परिवुसिए संचिक्खति ओमोयरियाए । से अकुट्ठे व हए व लूसिए वा । पलियं पगंथे अदुवा पगंथे। अतहिं सद्द फासेहिं इति संखाए । एगतरे अण्णयरे अभिण्णाय तितिक्खमाणे परिव्वए जे य हिरी, जे य अहिरीमणा । चेच्चा सव्वं विसोत्तियं फासे- फासे समियदंसणे ।
त भोगिणा वृत्ता जे लोगंसि अणागमणधम्मिणो आणाए मामगं धम्मं ।
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