________________
जैन जगत् : ११९ कुन्दकुन्द भारती में श्रुतपंचमी : प्राकृत भाषा दिवस समारोह
सम्पन्न सिद्धान्तचक्रवर्ती परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के पावन सान्निध्य में कुन्दकुन्द भारती में श्रुतपंचमी : प्राकृतभाषा दिवस समारोह आध्यात्मिकता के पवित्र वातावरण में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर सिद्धान्तचक्रवर्ती परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने कहा कि- अब से लगभग २२०० वर्ष पूर्व सर्वप्रथम धरसेनाचार्य के शिष्यों-पुष्पदन्त एवं भूतबलि ने षट्खंडागम आदि शास्त्रों को लिपिबद्ध किया था। तभी से यह पर्व शास्त्रों की रक्षा, ज्ञान की उपासना के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व पर सारस्वत आराधना करने से चक्रवर्ती की विभूति तक प्राप्त हो जाती है। समयसार में लिखा है कि उत्तम सुख के लिए यदि प्रेम करना है तो ध्यान से प्रेम करो, संतुष्ट होना है तो ज्ञान से और तृप्त होना है तो ध्यान से तृप्त हो। ज्ञान ही सब कुछ है।
समारोह के मुख्य वक्ता महामहोपाध्याय डॉ. दामोदर शास्त्री ने कहा किसंस्कृति ही राष्ट्र की असली सम्पत्ति है और संस्कृति आध्यात्मिक ज्ञान पर निर्भर होती है। जिनवाणी को गंगा के समान पवित्र माना गया है। स्वाध्याय ही सबसे बड़ा तप है।
समारोह के अध्यक्ष प्रो. वाचस्पति उपाध्याय ने कहा कि- मानव को दानव नहीं, बल्कि देव बनने का प्रयास करना चाहिए। समारोह के प्रमुख अतिथि प्रो.(डॉ.) राजाराम जैन ने कहा कि- श्रुतपंचमी सारस्वत पावन पर्व है।
समारोह में कुन्दकुन्द भारती संस्थान की त्रैमासिक शोध पत्रिका 'प्राकृतविद्या' के 'आचार्य देशभूषण जी मुनिराज जन्म शताब्दी विशेषांक' का लोकार्पण किया गया।
इन्स्टीटयूट आफ जैनालाजी, लंदन द्वारा तैयार एवं ब्रिटिश लाइब्रेरी द्वारा प्रकाशित कैटलाग आफ मैनुस्क्रिप्ट सहित तीन
ग्रंथों का प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा लोकार्पण
२७ मई, २००६ नई दिल्ली, विज्ञान भवन में देश-विदेश के गणमान्य महानुभावों, जैन विद्वानों, राजपुरुषों, साहित्यकारों एवं कवि, लेखकों की उपस्थिति में ब्रिटिश लायब्रेरी में संग्रहीत जैन हस्तप्रतों के तीन ग्रंथों का विमोचन करते हुए प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत ज्ञान समृद्धि का भंडार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org