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जैन जगत् : ११७
नियमावली तथा आवेदन पत्र का प्रारूप प्राप्त करने के लिए अकादमी कार्यालय, दिगम्बर जैन नसियाँ भट्टारकजी, सवाई रामसिंह रोड, से पत्र व्यवहार करें। डॉ. कमलचन्द सोगानी, संयोजक
जयपुर- ४
प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान वैशाली में जगदीशचन्द्र माथुर स्मृति व्याख्यानमाला - 2006 सम्पन्न
महावीर जयन्ती एवं वैशाली महोत्सव के अवसर पर संस्थान सभागार में ११ अप्रैल, २००६ ई. दिन मंगलवार को ११.३० बजे पूर्वाह्न "अहिंसा : सिद्धांत और व्यवहार" विषयक विद्वद्गोष्ठी आयोजित की गयी, जिसका उद्घाटन श्री चुआउङो ललसोता, आयुक्त, तिरहुत प्रमण्डल, मुजफ्फरपुर-सहअध्यक्ष, कार्यकारिणी एवं प्रकाशन समिति, प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली ने किया तथा अध्यक्षता, प्रसिद्ध इतिहासविद् प्रो. (डॉ.) विजय कुमार ठाकुर, प्रतिकुलपति, बी. आर. ए. बिहार विश्वविद्यालय ने किया। इसमें साहित्यवाचस्पति डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव, पूर्व उपनिदेशक, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, प्रो. सी. पी. सिन्हा, पूर्व निदेशक, के. पी. जायसवाल शोध संस्थान, पटना, प्रो. डी. एन. शर्मा एवं अन्य अनेक गणमान्य आचार्यों के महत्त्वपूर्ण व्याख्यान सम्पन्न हुए।
बी. एल. इन्स्टीट्यूट की मासिक अध्ययन संगोष्ठी में 'जैन एवं अन्य भारतीय दर्शनों में अनेकान्त' विषय पर शोधपत्र
भारतीय संस्कृति पर शोध एवं अध्ययन हेतु समर्पित भोगीलाल लहेरचन्द भारतीय संस्कृति संस्थान, दिल्ली के मासिक अध्ययन संगोष्ठी की दसवीं कड़ी में ८ अप्रैल, २००६ को आयोजित संगोष्ठी में बी. एल. आई. आई., दिल्ली के कोषाध्यक्ष, श्री देवेन यशवंत ने "जैन एवं अन्य भारतीय दर्शनों में अनेकान्त" विषय पर अपना शोध-पत्र प्रस्तुत किया। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अनेकान्त की आवश्यकता एवं महत्ता पर विद्वान वक्ता ने समीक्षात्मक साक्ष्य प्रस्तुत किये।
इस अवसर पर विशेष रूप से उपस्थित श्रमण संघीय जैन साध्वी श्री श्रेष्ठाश्रीजी म.सा., चन्दनाश्रीजी म.सा. एवं कर्णिकाश्रीजी म.सा. ने शोध विषय की सराहना करते हुए समाज व धर्म के प्रति आकृष्ट होने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया।
उपस्थित विद्वानों ने 'जैन एवं अन्य भारतीय दर्शनों में अनेकान्त' विषय पर शोधपूर्ण लेख की सराहना करते हुए इस बात पर बल दिया कि ऐसे प्रयासों
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