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७२ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक १/जनवरी-मार्च २००६ साथ होती है, ऐसा मानने वाले, इसके प्रवर्तक गंगाचार्य थे), त्रैराशिकवाद (जो जीव, अजीव और नोजीव अर्थात् जो जीव भी नहीं, ऐसी तीन राशियों को मानने वाले, जिसके प्रवर्तक आचार्य रोहगुप्त थे), अबद्धिकवाद (कर्म जीव के साथ बंधता नहीं, मात्र साथ रहता है, ऐसा मानने वाले, गोष्ठामाहिल इसके प्रवर्तक थे)। इनमें से बहुरतवाद और जीव प्रादेशिकवाद को महावीर के समकालीन बताया गया और शेष पाँचों को महावीर निर्वाण के बाद तक बताया गया। इन्हें निह्नव कहा गया, जिनमें से जमालि, रोहगुप्त, गोष्ठामाहिल के अतिरिक्त अन्य सभी जैन संघ में सम्मिलित हो गए, किन्तु यह तीन पृथक बने रहे, और इनकी परम्परा समाप्त हो गई। सातों के साथ-साथ विवरण यह सिद्ध करते हैं, कि सभी की परम्परा महावीर के समय प्रचलित रही होगी। . -
सभी दर्शनों को असत्य और मिथ्याभाषी कहते हुए जैन साहित्य में अन्य वादों की सूची में ईश्वरकर्तृत्ववाद (यह जगत् ईश्वर ने बनाया है, ऐसा मानने वाले) और विष्णमयवाद (विण्हमयं कसिणमेव य जगं ति केइ) का भी उल्लेख प्राप्त होता है।३९ यही नहीं, मिथ्या दृष्टियों द्वारा रचित शास्त्र को भी जैन साहित्य नो आगमभावश्रुत (विपरीत बुद्धि और भाव से रचित शास्त्र) कहता है, यथाभारहं, (महाभारत), रामायणं, भीमासुरूक्कं (भीमासरोक्त- जैनेतर- अंगविद्या का शास्त्र), कोडिल्लयं (अर्थशास्त्र), घोड़मुहं (घोट मुख, अश्वादि पशुओं का वर्णन करने वाला शास्त्र), सगडभद्दिआभो (शकटभद्रिका, शकट व्यूह के रूप में सैन्य रचना की विधि बताने वाला शास्त्र), कप्पासियं (कासिक-कपास से वस्त्र बनाने की विधि बताने वाला), नागसुहुम (नागसूक्ष्म-सर्प आदि का वर्णन करने वाला शास्त्र), कणगसत्तरी (कनकसप्तमी सोने आदि का वर्णन करने वाला शास्त्र), वहसेसियं (वैशेषिक), बुद्धवयणं (बुद्धवचन), वेसियं (वैशिक- कामशास्त्र, व्यवसाय का शास्त्र), काविलं (कपिल का संकाय), लोयाययं (लोकायत- बृहस्पति रचित चार्वाक), सद्वितंतं (षष्ठितंत्र-सांख्य), माढरं (माठर शास्त्र) पुराणं (पुराण), वागरणं (व्याकरण), नाडगादि (नाटक आदि), बावतरि कलाओं (बहतर कलाएँ), चत्तारि य वेदा संगोवंगा (सांगोपांग चार वेद)।
__ इसके अतिक्ति महावीर के विरोधी तीर्थकों (अन्य यूथिक) का उल्लेख भगवतीसूत्र में भी प्राप्त होता है। यहाँ राजगृह में श्रावकों के साथ इन तीर्थिकों के विवाद का उल्लेख प्राप्त होता है, जहाँ इन्हें कालोदायी, शैवालोदायी, उदय, नामोदय, नर्भोदय, अन्य पालक, शैलपालक, शंखपालक, सुहस्ति, गाथापति २ कहा गया। इनमें से नामोदय को विद्वान४२ आजीवकोपासक बताते हैं, और कालोदायी, बौद्ध उपासक ३ प्रतीत होता है। शैलपालक (पर्वतों से सम्बन्धित
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