________________
प्रतीत्यसमुत्पाद और निमित्तोपादानवाद : ६१
अंकुर उत्पन्न होता है इत्यादि जो कि क्षणिकवाद में ही सम्भव है, परन्तु स्थायी पदार्थों में परिवर्तन की यह शक्ति नहीं पायी जाती है। दूसरी ओर, बौद्धों से विपरीत वेदान्ती कार्य-कारण सम्बन्ध में सत्कारणवाद को स्वीकार करते हैं जो कारणता की नित्यवादी अवधारणा है। इसके अनुसार, सत्ता सर्वथा कटस्थ नित्य व अपरिणामी है। नित्य व अपरिणामी वस्त से उत्पन्न तथाकथित कार्य उसका विवर्त है। जैन-दर्शन वस्तु की सर्वथा क्षणिकवादी व सर्वथा नित्यवादी दोनों अवधारणाओं को अस्वीकृत कर वस्तु को परिणामी नित्य मानता है। इस तथ्य का युक्ति-युक्त प्रतिपादन करता है कि सर्वथा क्षणिक व सर्वथा नित्य वस्तु में अर्थक्रिया का अभाव होने से वह न तो किसी का कारण हो सकती है और न वह किसी कार्य को उत्पन्न कर सकती है। बौद्ध दर्शन में वस्तु का लक्षण अर्थक्रियाकारित्व माना गया है। किन्तु सर्वथा क्षणिक वस्तु का लक्षण अर्थ-क्रिया नहीं हो सकता है, क्योंकि क्षणिक पदार्थ न तो क्रम से अर्थक्रिया कर सकता है और न युगपत्। क्षणिक पदार्थ में देशकृत, कालकृत ब स्वभावकृत क्रम सम्भव न होने से वह क्रम से अर्थक्रिया नहीं कर सकता। क्योंकि वह उसी देश व उसी काल में नष्ट हो जाता है, वह न तो दूसरे देश में जाता है और न दूसरे काल में। तब उसमें देशादिकृत क्रम कैसे बन सकता है? क्षणिक पदार्थ अनेक शक्यात्मक और अनेक स्वभावात्मक न होने से युगपत् अनेक कार्यों को भी नहीं कर सकता। इस प्रकार अर्थक्रिया लक्षण क्षणिक पदार्थ में व्याप्त न होने से उसमें कार्य-कारण भाव सिद्ध नहीं हो सकता।
इसी प्रकार सर्वथा नित्य पदार्थ में भी अर्थ-क्रिया रूप क्रम व योगपद्य नहीं बन सकते। नित्य पदार्थ क्रम से अर्थ-क्रिया नहीं कर सकता; क्योंकि नित्य पदार्थ जिस स्वभाव से पहले कार्य को करता है यदि उसी स्वभाव से उसके बाद होने वाले दूसरे कार्य को भी करता है तो दूसरे कार्य को भी पूर्वकाल में हो जाना चाहिए। क्योंकि दोनों कार्यों को करने का स्वभाव एक ही है। और यदि नित्यपदार्थ युगपत् अर्थक्रिया करता है तो उसके द्वारा एक ही क्षण में सब कार्यों की उत्पत्ति हो जाने से उत्तरकाल में वह अनर्थक्रियाकारी हो जाएगा। तब वह आकाश-पुष्प की तरह असत् ठहरेगा।
पूर्वोक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकलता है कि सर्वथा क्षणिक व सर्वथा नित्य पदार्थ में अर्थक्रिया लक्षण सम्भव न होने से कार्यकारण भाव नहीं बन सकता है। ऐसे पदार्थ में ही अर्थक्रिया लक्षण घटित हो सकता है जो परिणामी व नित्य स्वभाव वाला हो अर्थात् कथंचित् नित्य व कथंचित् क्षणिक हो; क्योंकि जो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org