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________________ श्रमण, वर्ष ५७, अंक १॥ जनवरी-मार्च २००६ । प्रतीत्यसमुत्पाद और निमित्तोपादानवाद कु० अल्पना जैन* द्वितीय आर्यसत्य के अन्तर्गत वर्णित प्रतीत्यसमुत्पाद का सिद्धान्त बौद्धदर्शन के मूल सिद्धातों में एक एवं विशिष्ट सिद्धान्त है। इसे पालि भाषा में 'पटिच्चसमुत्पाद' कहा जाता है। यह कारणता विषयक सिद्धान्त है जो प्रत्येक कार्य को कारण सापेक्ष स्वीकार करता है। जगत् की समस्त वस्तुओं में सर्वत्र यह कार्य-कारण का नियम जागरूक है, कुछ भी अकारण नहीं है। सम्भवत: भगवान बुद्ध इस सिद्धान्त का प्रतिपादन कर अपने समय में प्रचलित उन समस्त सिद्धान्तों का निराकरण करना चाहते थे जो किसी वस्तु की उत्पत्ति को सकारण न मानकर यादृच्छिक या आकस्मिक मानने के दृढ़ इरादे पर अडिग थे तथा जनसामान्य में भी उसी अवैज्ञानिक मान्यता का प्रसार कर रहे थे। भगवान बुद्ध ने इस सिद्धान्त के द्वारा । न केवल यादृच्छिकतावाद का निषेध किया, बल्कि कार्य-कारण के सम्बन्ध में उस दृष्टिकोण को भी अस्वीकार किया, जो किसी वस्तु की उत्पत्ति में कारणत्व को तो स्वीकार करता है, किन्तु वह कारणत्व में ज्ञात तत्त्वों के अतिरिक्त प्रकृति, ईश्वर आदि अलौकिक तत्त्वों को भी स्वीकार करता है। प्रतीत्यसमुत्पाद (का सिद्धान्त) कारणता की क्षणिकवादी अवधारणा है। इसके अनुसार, प्रत्येक वस्तु परतन्त्र, आश्रित, सापेक्ष तथा प्रतीत्य-समुत्पन्न होने के कारण क्षणिक व अस्थायी है अर्थात् प्रत्येक वस्तु केवल एक क्षणमात्र अस्तित्व रखती है। वह उत्पत्ति के ठीक तुरन्त बाद नष्ट हो जाती है। उनका मानना है कि वस्तु का अस्तित्व क्षणिक होने पर ही वह अन्य वस्तुओं को उत्पन्न कर सकती है, क्योंकि क्षणिक वस्तु में ही अर्थक्रियाकारित्व सम्भव है। यदि वस्तु नित्य व अपरिवर्तन-शील हो तो अर्थक्रियाकारित्व के अभाव में उसमें अन्य वस्तु को उत्पन्न करने की सामर्थ्य नहीं हो सकती है। अत: ऐसी वस्तु की सत्ता ही सम्भव नहीं है। इस प्रकार अस्तित्व संसार के पदार्थों की व्यवस्था में किसी प्रकार का परिवर्तन करने की क्षमता का नाम है। जैस- बीज की सत्ता है; क्योंकि उससे * फेलो आई०सी० पी०आर०, शोध छात्रा, दर्शन विभाग, डॉ० हरीसिंह गौर वि०वि०, सागर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525057
Book TitleSramana 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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