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पद्म पुराण में राम का कथानक और उसका सांस्कृतिक पक्ष : ४७
इक्ष्वाकु वंश में राजा अनरण्य के दशरथ नामक पुत्र की उत्पत्ति होती है और वह बड़ा होकर अयोध्या नगरी पर शासन करता है। एक दिन रावण को सगर बुद्धि नामक निमित्तज्ञ से विदित होता है कि मेरी मृत्यु में राजा जनक और दशरथ की सन्तान निमित्त बनेगी। तब रावण अपने भाई विभीषण को इन दोनों की हत्या करने के लिए भेजता है। पर विभीषण के आने से पहले ही नारद इन दोनों राजाओं को सचेत कर देता है जिससे ये अपने महलों में अपने शरीर के अनुरूप पुतले छोड़कर बाहर निकल जाते हैं। विभीषण पुतलों को ही सचमुच का राजा समझ मारकर तथा शिर को लवण समुद्र में फेंककर हमेशा के लिए निश्चिन्त हो जाता है। दशरथ का विवाह कौशल्या, सुमित्रा, कैकयी और सुप्रभा से होता है। इनसे क्रमश: पद्म यानी राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न पैदा होते हैं।
राजा जनक की विदेहा रानी के एक पुत्री सीता तथा एक पुत्र भामण्डल उत्पन्न होता है। उत्पन्न होते ही प्रसूतिगृह से एक पूर्वभव का वैरी भामण्डल का अपहरण कर लेता है। अपहरण के बाद भागण्डल एक विद्याधर को प्राप्त होता है। उसी के यहाँ उसका लालन-पालन होता है। नारद की कृपा से सीता का चित्रपट देखकर भामण्डल का उसके प्रति अनुराग बढ़ता है। छल से जनक को विद्याधर लोक में बुलाया जाता है। भामण्डल के पिता के आग्रह करने पर भी जनक उसके लिए पुत्री देना स्वीकृत नहीं करता है, क्योंकि वह पहले राजा दशरथ के पुत्र राम को देना स्वीकृत कर चुका था। विद्याधर ने शर्त रखी कि यदि राम यह वज्रावर्त धनुष चढ़ा देंगे तो सीता उन्हें प्राप्त होगी अन्यथा हम अपने पुत्र के लिए बलात् छीन लेंगे। विवश होकर जनक यह शर्त स्वीकार कर लेता है। सीता के स्वयंवर में राम वज्रावर्त धनुष चढ़ा देता है। अतः सीता के साथ राम का विवाह सम्पन्न होता है। यह सुनकर भामण्डल उत्तेजित हो उठता है और सीताहरण की भावना से सेना लेकर अयोध्या की ओर चल देता है। मार्ग में विदग्ध नामक देश के मनोहर नगर पर जब उसकी दृष्टि पड़ती है तब उसे पूर्वभव स्मरण हो जाता है। वह विद्याधर को बताता है कि मैं पूर्वभव में यहाँ का राजा कुण्डलमण्डित था। धर्म के प्रभाव से राजा जनक का पुत्र हआ। उत्पन्न होते ही मेरा हरण हुआ और आपके यहाँ पलकर मैं पुष्ट हुआ। जिस सीता के व्यामोह से मैं उन्मत्त हो रहा था वह मेरी सगी बहन है। अपने कविचारों को देखकर भामण्डल को संसार से विरक्ति हो जाती है और वह मुनि बन जाता है।
अयोध्या में राम-सीता का भव्य प्रवेश होता है। सर्वभूतहित मुनिराज के द्वारा दशरथ अपने पूर्वभव को सुनकर विरक्त हो जाते हैं। वे मन्त्रियों के समक्ष अपना निश्चय प्रकट कर राम के राज्याभिषेक की घोषणा करते हैं। समय पाकर भरत की माँ कैकयी
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