________________
४६ :
श्रमण, वर्ष ५७, अंक १/जनवरी-मार्च २००६
बलदेव के रूप में चित्रित किया गया है न कि भगवान राम के रूप में। इन महापुरुषों से जुड़ी हुई पूर्वजन्म की कथाओं का भी पद्म पुराण में यत्र-तत्र उल्लेख प्राप्त होता है। पद्म पुराण के कथानक वाल्मीकि रामायण से बहुत भिन्न हैं, यथादशरथ के तीन के स्थान पर चार रानियाँ हैं; सीता का भाई भामण्डल, हनुमान का विवाह, आकाश मार्ग से लंका पहुँचना, लक्ष्मण के द्वारा रावण को मारा जाना आदि नवीन प्रसंग इसमें उद्धृत हैं, यहाँ राम स्वेच्छा से वन में जाते हैं न कि कैकयी द्वारा १४ वर्ष वनवास का आदेश देने पर तथा स्वर्णमृग के स्थान पर सिंहनाद के बहाने रावण सीता-हरण करता है। पद्मपुराण में कथानक इस प्रकार है -
कथा का प्रारम्भ राजा श्रेणिक की जिज्ञासा से होता है। वे भगवान महावीर के प्रथम गणधर गौतम स्वामी से रामकथा का यथार्थ रूप जानने की इच्छा प्रकट करते हैं। तब गौतम स्वामी फरमाते हैं 'नमिसुव्रतयोर्मध्ये लक्ष्मणः परिकीर्तितः' । २०वें तीर्थंकर मुनिसुव्रत एवं २१ वें तीर्थंकर नमिनाथ के मध्यकाल में आठवें बलदेव राम यानी पद्म उत्पन्न हुए। इस कथा का प्रारम्भ में विद्याधर लोक, राक्षस वंश, वानर वंश और रावण की वंशावली से करता हूँ। राक्षस वंश के राजा रत्नश्रवा तथा केकसी का पुत्र रावण था। रत्नश्रवा ने सर्वप्रथम जब अपने पुत्र रावण को देखा तब उसे हार पहने हुए शिशु के दस सिर दिखे। इसीलिए उसका दशानन या दशग्रीव नाम रखा गया। रावण ने बहत शास्त्रों का अध्ययन किया
और अनेक विद्याएँ अर्जित की। रावण का विवाह मन्दोदरी आदि ६००० कन्याओं के साथ हुआ। अनन्तवीर्य केवली के उपदेश को सुनकर रावण प्रतिज्ञा लेता है की जो स्त्री मुझे नहीं चाहेगी मैं उसे हाथ नहीं लगाऊँगा। वह इस नियम को अपने जीवन में दृढ़ता पूर्वक पालन करता है, इसलिए सीता को हरण कर उसे अशोक वाटिका में रखता है और उसे प्राप्त करने के लिए वह भीषण युद्ध करता है। किन्तु सीता की इच्छा के विरुद्ध उसके शरीर पर अंगुली भी नहीं लगाता है। बाल्मीकि रामायण में रावण को राक्षस बताया है जबकि रविषेणाचार्य उन्हें राक्षस न बताकर राक्षसवंशी बतलाते हैं।
रावण का वरुण के साथ युद्ध होता है, जिसमें रावण की ओर से पवनंजय भी शामिल होता है। पवनंजय की पत्नी अंजना से हनुमान उत्पन्न होते हैं। हनुमान भी वानर न होकर वानरवंशी थे, ऐसा जैनाचार्य मानते हैं। पुन: वरुण के विरुद्ध होने पर रावण सभी राजाओं को बुलाता है जिसमें हनुमान भी सहयोग के लिए आते हैं। वरुण की पराजय होती है और रावण प्रसन्न होकर अपनी बहन चन्द्रनखा की पुत्री अनंगकुसुमा का विवाह हनुमान के साथ करते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org