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श्रमण, वर्ष ५७, अंक १/जनवरी-मार्च २००६
घ) कृत् - सिद्धिपाद, चक्रपाद, कर्मणिपाद, क्वन्सुपाद (उणदिपाठ), धातुसम्बद्धपाद।
इसका तद्धित भाग पर्यन्त ही शर्ववमन् कृत माना जाता है। कृत प्रकरण का कर्ता कात्यायन को माना जाता है।२१ इसमें १,५०० सूत्र हैं तथा सम्पूर्ण व संक्षिप्त हैं। संक्षिप्तता का कारण राजा शलिवाहन के लिए शीघ्रातिशीघ्र व्याकरणबोध कराना कहा गया है। संक्षिप्तसार२२
संक्षिप्तसार प्रक्रिया ग्रंथ की रचना क्रमदीश्वर द्वारा की गयी है। जुमरनन्दी द्वारा संशोधित होने के कारण इसे जौमर व्याकरण भी कहा जाता है। संक्षिप्तसार में ‘णत्व' आदि समकार्यविषयक सूत्रों को एक साथ रखा गया है। संक्षिप्तसार के प्रथम ७ पाद लौकिक संस्कृत तथा अष्टम पाद प्राकृत भाषा के हैं। सिद्धहेमशब्दानुशासन
११वीं शती में जैन धर्म के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्य हेमचन्द्र ने संस्कृत तथा प्राकृत दोनों ही भाषाओं के लिए हेमशब्दानुशासन की रचना की। इसके आठ अध्यायों में से सात संस्कृत के लिए तथा आठवां अध्याय प्राकृत भाषा के लिए है। संस्कृत व्याकरण के लिए ३,५६६ सूत्र तथा प्राकृत भाषा के लिए १,११९ सूत्र हैं। कुल ४,६८५ सूत्र हैं। मलयगिरि शब्दानुशासन
१२वीं शताब्दी में जैन सम्प्रदाय के मलयगिरि ने शाकटायन व हेमचन्द्र से प्रभावित शब्दानुशासन की रचना की। इस प्रक्रिया ग्रंथ का प्रकरण क्रम हेम व्याकरण के समान है। अभी तक प्रकाशित भाग की सूत्र संख्या २,२०० के लगभग है। मान्यतानुसार मलयगिरि ने धातुपाठ, गणपाठ, उणादिपाठ तथा लिङ्गानुशासन की भी रचना की थी, परन्तु वर्तमान में ये उपलब्ध नहीं हैं।२५ वोपदेव व्याकरण
वोपदेव का मुग्धबोध व्याकरण अपने पूर्ववर्ती सभी व्याकरण ग्रंथों से संक्षिप्ततम है। प्रक्रिया की दृष्टि से प्रकरण योजना है। प्रकरण क्रम इस प्रकार हैंसंज्ञा, सन्धि, स्याद्यन्त (नामरूप) अजन्त, हसन्त, व्य (अव्यय), स्त्रीत्य (स्त्री प्रत्यय), भवादि, अदादि आदि।२६
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