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________________ श्रमण, वर्ष ५७, अंक १ जनवरी-मार्च २००६ % E भारतीय व्याकरण शास्त्र की परम्परा ___ डॉ० अतुल कुमार प्रसाद सिंह* ___आमजन में बोली जानेवाली बोलियों में जब साहित्यं निबद्ध होने लगता है तब वह बोली भाषा बन जाती है। कालान्तर में आमजन की बोलियां तो प्रवाह में अपने स्वरूप में परिवर्तन करती आगे बढ़ जाती हैं लेकिन साहित्य में प्रयुक्त भाषा का कोई प्रवाह नहीं बन पाता बल्कि उसका रूप स्थिर हो जाता है। इन साहित्यिक भाषाओं के ज्ञान के लिए, उसके अर्थ, मूल, पद आदि के स्पष्टीकरण के लिए व्याकरण का ज्ञान आवश्यक होता है, जो साहित्य, भाषा व जनबोली के मिले-जले तात्कालिक प्रयोगों के आधार पर उसके रूप को स्पष्ट करता है। व्याकरण भाषा के प्रवाह को नियंत्रित करता है तथा उसमें उत्पन्न होनेवाले दोषों का निवारण कर भाषा के शुद्ध स्वरूप की रक्षा करता है। प्रारम्भिक व्याकरण व्याकरणों की परम्परा सनातन काल से ही है, ऐसी परम्परागत मान्यता है। परम्परा के अनुसार तो ब्रह्मा को वेदों की तरह ही व्याकरण का भी प्रवर्तक माना गया है। महाभाष्य में पतंजलि ने इस परम्परा का समर्थन करते हुए कहा है-"ब्रह्म बृहस्पतये प्रोवाच, बृहस्पतिरिन्द्राय, इन्द्रो भारद्वाजाये, भारद्वाज ऋषिभ्य: ऋषयो ब्राह्मणेभ्यः।" इस प्रकार ब्रह्मा से लेकर पाणिनि तक अनेक मुनियों ने व्याकरण की रचना की है। - एक मान्यता के अनुसार पाणिनि से पूर्ववर्ती पचासी वैयाकरण हुए हैं। वोपदेव ने भी आठ प्रसिद्ध वैयाकरणों का उल्लेख किया है जिसमें पाणिनि भी एक हैं। पाणिनि ने स्वयं अष्टाध्यायी में अपने पूर्ववर्ती दस वैयाकरणों का उल्लेख किया है। कछ विद्वानों के मत में इनकी संख्या २६ है। इनमें १६ अनुल्लिखित आचार्यों की गणना की जाती है। इन आचार्यों का पाणिनि ने नाम से उल्लेख न कर प्राचार्य, उदीचाम, आचार्याणाम तथा एकेषाम पदों से उल्लेख किया है। इसके अलावा कुछ अन्य वैयाकरणों का भी उल्लेख प्राप्त होता है। चूँकि व्याकरण का मुख्य अर्थ सूत्रपाठ लिया जाता है इसलिए सूत्रपाठ के सहायक अंग के रूप में * जनरल फेलो, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525057
Book TitleSramana 2006 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2006
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size8 MB
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