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विद्यापीठ के प्राङ्गण में
ध्यातव्य है कि प्रतिभागियों को निर्णायक मण्डल द्वारा जो अंक दिये गये हैं वे उनकी निबन्ध की विषय प्रस्तुति, भाव, भाषा एवं विषय वस्तु को आधार बनाकर दिये गये हैं तथा परिणाम में पूरी पारदर्शिता बरती गई है।
विजेता सभी प्रतिभागियों को पार्श्वनाथ विद्यापीठ में दिनांक १५ से १७ दिसम्बर, २००६ को आयोजित "Contribution of Shraman Tradition to Indian Culture & Tourism" ( "भारतीय संस्कृति एवं पर्यटन को श्रमण परम्परा का अवदान' विषयक त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के अवसर पर एक सादे समारोह में पुरस्कार एवं प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जायेगा तथा उनके निबन्धों को श्रमण (पार्श्वनाथ विद्यापीठ की शोध त्रैमासिक पत्रिका) में साभार प्रकाशित किया जायेगा। प्रतिभागियों को विद्यापीठ आने हेतु समय एवं तिथि की सूचना बाद मे प्रेषित की जायेगी । बुलाये गये प्रतिभागियों को एक तरफ का मार्ग व्यय (द्वितीय शयनयान श्रेणी - रेलवे ) विद्यापीठ द्वारा देय होगा ।
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डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय संयोजक निबन्ध प्रतियोगिता
अन्तःकरण की वृत्तियां अनुशासित करना ही शील है
एक बार भगवान बुद्ध के दर्शन के लिए अनेक भिक्षु अपने गुरु के साथ आए । वे आते ही बड़ा शोर-गुल कर रहे थे। भगवान बुद्ध ने उनके गुरु को खबर भेजी कि उन्हें शील का अभ्यास ठीक से कराएँ, फिर उन्हें लाएँ। उनके गुरु ने वर्ष भर उन्हें शील का अभ्यास कराया। जब ये भिक्षु भगवान बुद्ध के पास आए, तब भगवान चुपचाप शांत भाव से बैठ गए। वे रात्रभर बैठे। आनंद बुद्ध को बार-बार उन भिक्षुओं के बैठे रहने की खबर देता, परंतु भगवान कुछ न बोलते। सवेरा होने पर देखा गया कि सभी भिक्षु भगवान बुद्ध की तरह ही समाधिस्थ हैं।
अंतःकरण की वृत्तियाँ अनुशासित हो जाने पर थोड़े प्रयास से ही सद्गति मिल जाती है।
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