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किया जाना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है क्योंकि उनका अपना विशेष महत्त्व है। विषयप्रवर्तन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर के सचिव डा० अनुपम जैन ने किया।
द्वितीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता पार्श्वनाथ विद्यापीठ के सहनिदेशक डा० श्रीप्रकाश पाण्डेय ने की। डा० पाण्डेय ने पाण्डुलिपियों के डिजिटल संरक्षण को आधुनिक आवश्यकता बताते हुए कहा कि संरक्षण की हम चाहे जो भी विधि अपना लें, हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि पाण्डुलिपियों की मूल प्रतों को कोई नुकसान न पहुंचे।
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संगोष्ठी में बाहर से पधारे विद्वानों में डा० ए.पी. गक्खर, (इलाहाबाद विश्वविद्यालय), डा० कमल जैन, डा० अचल पंडा (राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान), कु० कीर्ति श्रीवास्तव (राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन) ने विशेषज्ञों के रूप में अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये । संगोष्ठी की सफलता जिनके बिना सम्भव नहीं थी उनमें से मुख्य हैं- संगोष्ठी के निदेशक प्रो० एच० एन० प्रसाद, श्री बी० एन० सिंहजी, समन्वयक डा० संजीव सर्राफ, डॉ० ए०के० श्रीवास्तव, डॉ० वी०के० मिश्रा एवं श्री विवेकानन्द जैन।
पत्राचार अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा संचालित अपभ्रंश साहित्य अकादमी द्वारा “पत्राचार अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम' का चौदहवाँ सत्र १ जनवरी, २००६ से आरम्भ किया जा रहा है। इसमें हिन्दी एवं प्रान्तीय भाषा विभागों के साथ-साथ अन्य सभी विभागों के अध्यापक, शोधार्थी, अध्ययनरत छात्र एवं संस्थानों में कार्यरत विद्वान सम्मिलित हो सकेंगे। नियमावली एवं आवेदन पत्र दिनांक ३० नवम्बर २००५ तक अकादमी कार्यालय-दिगम्बर जैन नसियाँ भट्टारकजी, सवाई रामसिंह रोड, जयपुर-३०२००४ से प्राप्त करें। कार्यालय में आवेदन पत्र पहुँचने की तारीख १५ दिसम्बर २००५ है। डॉ० कमलचन्द सोगानी, संयोजक, अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर। *
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