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________________ श्रद्धाञ्जलि श्रमण, वर्ष ५६, अंक ३-४ जुलाई - दिसम्बर २००५ माता प्रमिला बेन को मिला अन्तिम समय पर साध्वी (पुत्री) का मंगल सान्निध्य घोलवड (महाराष्ट्र) अपनी जन्मभूमि पर १७ वर्षों बाद चातुर्मास हेतु पधारीं धर्म प्रभाविका पार्श्वचन्द्रगच्छीय प्रवर्तिनी आर्या ॐकार - भव्याशिशु, प्रखरप्रवचनकार, साध्वीरत्न प०पू० सिद्धान्तरसा जी ने अपनी संसारपक्षीय मातुश्री को २८ सितम्बर २००५ को अन्तिम विदाई दी। परम धार्मिक प्रमिला बेन पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रही थीं। उन्हें अपनी हार्दिक श्रद्धाञ्जलि देते हुए साध्वी सिद्धान्तरसा जी ने कहा कि मुझे आत्मतोष है कि प्रमिला बेन धर्ममय जीवन जीकर मृत्यु का वरण कीं । उनके जीवन जागृति के विषय में बताते हुए साध्वी श्री ने कहा कि अपनी मृत्यु के कुछ दिन पूर्व उन्होंने एक पत्र अपने पति श्री चंपक भाई पुनमियां को दिया था और कहा था कि यह पत्र मेरी मृत्यु के पश्चात् ही खोलिएगा। मृत्यु के बाद जब वह पत्र खोला गया तो उसमें अपने दुष्कृत्यों की गर्हा एवं सुकृत्यों की अनुमोदना करते हुए उन्होंने चतुःशरण स्वीकार किया था। यह एक मिशाल थी उनके सतत् जागृत जीवन की । वस्तुतः श्रीमती प्रमिला बेन ने अपना धर्ममय जीवन जीकर मृत्यु को महोत्सव बना दिया। साध्वी श्री ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा कि जाने क्यूं यह एहसास होता है कि तूं किसी लम्बे प्रवास पर गयी है, शीघ्र ही आ जाएगी ! मेरा साधक मन सहज ही नहीं मानता कि तूं महाप्रयाण कर गयी है। साध्वी सिद्धान्तरसा जी समस्त संसारी परिवार के साथ साध्वी सिद्धान्तरसाश्रीजी जी ने अपनी मातुश्री को हर्ष एवं दुःख मिश्रित विदाई देकर अपना ऋण अदा किया। पार्श्वनाथ विद्यापीठ की स्वर्गीय श्रीमती प्रमिला बेन को हार्दिक श्रद्धाञ्जलि | For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525056
Book TitleSramana 2005 07 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size11 MB
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