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________________ श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६ जनवरी- जून २००५ आनन्दजी कल्याणजी पेढी के संस्थापक युगपुरुष श्रीमद् देवचन्द्र जी महाराज मुनि पीयूष सागर * आर्य संस्कृति में आध्यात्मिक जागरण और सामाजिक क्रान्ति के इतिहास में श्रमण परम्परा का अविस्मणीय योगदान रहा है । इसी वसुंधरा पर समय-समय पर तीर्थंकर, केवली, गणधर, युगप्रधान आचार्य, उपाध्याय जैसे अनेकानेक ज्योतिर्धर मूर्धन्य दार्शनिक संत मनीषियों का अवतरण होता रहा है। ऋषि-मुनियों संत महात्माओं के कारण आर्य संस्कृति को ज्ञान का दिव्य प्रकाश और अखंड निजानन्द धर्म का अमर संदेश मिलता रहा, इसी कारण से आर्य देश केवल कृषि प्रधान ही नहीं बल्कि ऋषि प्रधान भी रहा है। राजस्थान की वीर प्रसवा भूमि में समय-समय पर नर रत्नों का जन्म होता रहा है। इसी स्वर्णिम शृंखला में १८वीं शताब्दी के अन्तर्गत स्याद्वाद शैली के द्वारा जनमानस के अन्तर्मन में अभिनव चेतना का संचरण करने वाले एकावतारी देवचन्द्र जी का जन्म वि०सं० १७४६ में बीकानेर (राज०) जनपद के शोभासर गांव में श्रद्धावान श्रावक तुलसी दास जी के घर आंगन में सुश्राविका धन देवी की कुक्षि से हुआ। माता के गर्भ में च्यवन होने के पश्चात् एक दिन अरुणोदय के समय में सगर्भा माता ने परमात्मा के जन्माभिषेक महोत्सव का परिदृश्य स्वप्न रूप में देखा । सौभाग्य सूचक स्वप्न का फल जानने के लिए श्री जिनरत्न सूरि के पट्टधर आचार्य जिनचन्द्र सूरि के समक्ष स्वप्न का वर्णन किया। पू० आचार्य प्रवर ने धनबाई से कहा कि तुमने ब्रह्ममुहूर्त में जो स्वप्न देखा तद्नुसार तुम्हारा भावी पुत्र छत्रपति (राजा) या धर्मपति बनेगा । गर्भकाल परिपक्व होने पर बालक का जन्म हुआ। जन्म से पूर्व स्वप्न में देवदर्शन होने के कारण बालक का नाम देवचन्द्र रखा। जिनशासन के प्रति पूर्ण समर्पित माता-पिता ने पुत्र जन्म के पूर्व ही वाचक राजसागर जी म० के समक्ष प्रतिज्ञा की थी कि यदि उनके घर में बालक का जन्म हुआ तो उसे जिनशासन के संवर्धन एवं स्वपर आत्म-कल्याण हेतु समर्पित करेंगे। माता-पिता ने बालक देवचन्द्र में धार्मिक संस्कारों का बीजारोपण शैशवकाल से ही करना शुरू कर दिया। पूर्व पुण्य बल से धार्मिक संस्कार * श्री ऋषभदेव जैन श्वेताम्बर मन्दिर, नवापारा, राजिम, रायपुर, छत्तीसगढ़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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